गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !

कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !
कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !
नवरात्री में सभी देवी  दुर्गा स्वरुप मातृशक्ति का आशीर्वाद जन-जन ने प्राप्त किया। गरबा पंडालों में डंडियां की धूम रही। नृत्य मनमोहक संगीत और रंग बिरंगी पोशाक से परिपूर्ण होकर धर्म और आध्यात्म के साथ जुड़ने का अवसर किसी भी व्यक्ति ने हाथ से नहीं जाने दिया।
                                                                          बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के इस युद में घर-घर एवं समाज में सामाजिक संस्थाओं के तौर पर कन्या पूजन एवं कन्या भोज के भी आयोजन किये गए। समाज में स्वीकार्य इस परम्परा को सभी ने सहर्ष स्वीकार किया। अनुसरण भी किया ! मगर क्या यह सब परम्पराओं का जीवन की सत्यताओं से जुड़ाव हो सकेगा, यह संभव नहीं लगता हैं।

कन्या में मातृशक्ति है स्वीकारना होगा 


ये देश समाज कन्या के इस स्वरुप को किस रूप में स्वीकार कर रहा है, यह देखकर भी विकृत मानसिकता वाले लोगो की संख्या में कमी नहीं आई है।  आज इस समाज में बेटियों को असुरक्षित माना जा रहा है। हम समाचार पत्रों और मिडिया के माध्यम से देखते है कि तीन वर्ष की कन्या से बलात्कार दो वर्ष की कन्या से अत्याचार तो समाज के विकृत रूप पर शर्म एवं घिन्नता का अनुभव होने लगता है। आज के इस युग में जब हमारे पास उन्नतशील होने की सभी परिस्थियाँ उपस्थित है। हम बेटी को दूसरे दर्जे की मान्यता कैसे दे सकते है। समाज में कई कुरीतियाँ जो हमने आज की असुरक्षा की भावना से उपजी थी। आज मोबाइल एवं कम्प्यूटर के युग में हमने आधुनिकता को तो स्वीकार किया है परन्तु स्त्री शक्ति को स्वीकारने में हमें बहुत देर हो गई हैं। अभी भी वक्त है, स्वीकार करने का ! समय पर यदि हम जाग गए तो हम एक उन्नत राष्ट्र के निर्माण की संकल्पना को साकार कर पाएंगे। 



घर से देना होंगे स्त्री-शक्ति सम्मान के संस्कार 


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले के अपने भाषण में कहा था कि हमें सिर्फ बेटियों पर नहीं बेटों पर भी नज़र रखनी चाहिए। बेटा रात को कितनी बजे घर आता है ? उसके कौन मित्र है ? उसकी क्या आदतें हैं ? वह छोटे-बड़ों का अंतर समझता है या नहीं ? स्त्री के प्रति उसकी नज़रें ठीक दिशा में कार्य कर रही है या नहीं ? जिनको बेटियाँ है वे बेटियों को बांध कर घर में बैठा दे यह वर्तमान परिस्थिति में संभव नहीं है।

मुगलों के समय था असुरक्षा का भाव 

भारतीय इतिहास में जब मुगलों ने इस देश पर आक्रमण किया था तब हमारी बहु-बेटियां सुरक्षित नहीं थी।  उन्हें सुरक्षित करने के लिए रजस्वला होने से पूर्व उनका विवाह संपन्न करा दिया जाता था। इस देश में बाल विवाह की कुरीति ने इस कारण जन्म लिया। यह देश आक्रांताओं से असुरक्षित रहा और उन स्थितियों का सामना करने के बाद देश की परिस्थितियों को बदला है। आज देश में सर्वधर्म समभाव भी है ! स्त्री शिक्षा भी हैं और स्त्री को समान अधिकारों की बात भी की जा रही है। ऐसे में स्त्री की प्रति नज़रिए को बदलना बहुत आवश्यक हैं। हम ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ दे सके तो ही हमारी शिक्षा चेतना शुन्य होने से बचेगी ! हमें नारी के सम्मान को प्रथम पायदान पर रखना होगा। 

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!

करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!
करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!


माँ के चरणों में वंदन कर !
मैंने यह प्रण ठान लिया !!

मातृ शक्ति के मान बिंदु !
पर अपना सब कुछ त्याग दिया !!

करूँ वंदना मातृ चरणों में !
कन्या पर अभिमान किया !!

स्त्री शिक्षा की प्रगति में !
आग्रहपूर्ण व्यवहार किया !!

आओ हम सब मिलकर !
अब नारी का मान बढ़ाते हैं !!

गंगा की पावन धारा-सा !
निर्मल राष्ट्र बनाते हैं !!

हमने बचपन से सीखा हैं !
करना चरण वंदना माता की !!

लाज लिए अपनी आँखों में !
श्रद्धा भाव भरने की !!

भारत में नदियों को, भूमि को !
हमने माता माना हैं !!

नारी का सम्मान करें सब ! 
मानवता का नाता हैं !!

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

गाँधी ब्रांड को भुनाया कांग्रेस ने ! सपना साकार किया मोदी ने !!

गाँधी ब्रांड को भुनाया कांग्रेस ने !  सपना साकार किया मोदी ने !!


राष्ट्रपिता श्री मोहनदास करमचंद गाँधी  ने इस राष्ट्र के आज़ादी के स्वप्न को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अहिंसा, त्याग, सत्य, स्वछता के प्रेरक सन्देशों को देकर गाँधी जी ने देश को दिशा देने का प्रयत्न किया। आज़ादी के समय देश के एकमात्र राजनीतिक दल कांग्रेस ने गाँधी नाम और पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेकर इस देश में 60 वर्षों तक सत्ता का संचालन किया। इन 60 वर्षों में राष्ट्र निर्माण में आने वाली नीतियों का मार्ग स्वयं गाँधी जी ने कांग्रेस को प्रदान किया, तो क्या कांग्रेस गाँधी जी के उन सिद्धांतों के आधार पर सत्ता संचालन में कामयाब हो पाई। आज जब देश राजनीति के दूसरे दौर से गुजर रहा है, वक्त है उन सिद्धांतो की समीक्षा करने की !  क्या  सिद्धांतो कोण जनमानस तक पहुँचाने में कामयाब हो पाई कांग्रेस ? क्या स्वदेशी आंदोलन का महत्वपूर्ण सन्देश हमारे यहाँ कुटीर उद्योगों के रूप में घर-घर की बेरोजगारी दूर कर पाए ?क्या हम हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने में कामयाब हो पाए ? क्या हम स्वच्छता को राष्ट्रिय संकल्प के रूप में आंदोलन बना सके ? क्या देश में अब भी खादी अपने वजूद को प्राप्त कर चुकी है ?

हम राष्ट्र को गौरव प्राप्ति के मुद्दों को ही महत्त्वपूर्ण मानकर अंजाम देंगे तो भी गाँधी जी के सपनो को साकार करने में कामयाब हो जायेंगे !

आज भी हिन्दू समाज दूसरे दर्जे पर 

गाँधी जी ने आज़ादी प्राप्ति के पश्चात  जो बंटवार का निर्णय लिया उसमें भारत को हिन्दू समाज के लिए हिंदोस्तां नाम देकर प्रतिपादित किया था परन्तु 60 दशक बीत जाने के पश्चात् भी आज हिन्दू समाज एवं हिन्दू धर्म के प्रति निर्णयों में दूसरे दर्जे पर रखा जाता है। अम्बेडकर जी ने संविधान निर्माण के समय गाँधी जी के सपनो का ध्यान रख कर मुस्लिम समाज को अल्पसंख्यक होने के नाते बहु, पत्नी, बहुविवाह एवं अन्य कई रियायतें देकर बढ़ावा दिया। कांग्रेस को मुस्लिमों ने सदैव सुरक्षित सत्ता का केंद्र माना ! इन सम्पूर्ण निर्णयों में गाँधी जी के उसूलों की चिंता थी, परन्तु राजसत्ता प्राप्ति के पश्चात समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का चिंतन शायद न गाँधी जी दे सकें, न कांग्रेस अपने शासन में तय कर सकी। 



स्वदेशी आंदोलन पिछड़ा 

गाँधी जी के स्वदेशी अपनाओं आंदोलन के सन्दर्भ में प्रथम सरकार से ही हम पिछड़ने लगे थे। कहते है प्रथम प्रधानमंत्री के कपड़ों की व्यवस्था, धूम्रपान की व्यवस्था विदेशों से होती थी ! सरकार के निर्णय भी उसी दिशा में चल पड़ते है हमारे कृषक, हमारी शिक्षा, हमारी चिकित्सा और हमारा इतिहास तक अपने सही मार्ग का निर्धारण नहीं कर सका ! देश जब पीछे मुड़कर देखता है तो पता चलता है कि हम गाँधीवादी सिद्धांतो को काफी पीछे छोड़ चुके है। आज बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल उसमें बिकने वाली ब्रांडेड वस्तुएं, मेकलें की शिक्षा पद्धति हो या अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति, हमारे दैनदिन जीवन में अगर सुबह से रात तक हम गणना करे तो हम अपनी जीवन पद्धति में स्वदेशी को भूल चुके है। 


स्वच्छता का सन्देश नहीं पहुंचा, अब बदलाव दिखता है 

गाँधी जी ने अपने स्वयं के जीवन में सफाई को महत्पूर्ण मानकर जनता को सन्देश दिया। स्वच्छता के लिए कार्य करने वाले समाज को ईश्वर का दूत मान कर हरिजन नाम प्रदान किया परन्तु सरकार उस समाज को वोट बैंक मानकर लाभ तो देती रही परन्तु स्वच्छता को एक आंदोलन के रूप में देश के सामने रखने में कामयाब नहीं हो सकी। 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी  की सरकार बनने के बाद 2 अक्टूबर से स्वच्छता के लिए झाड़ू उठाकर देश को गाँधी जी के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। अपनी टीम में 9 स्वच्छता दूत बनाकर जन-प्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र में यह सब करने का सन्देश दिया तो देश ने इसे क्रन्तिकारी कदम मानकर सहर्ष स्वीकार किया। आज देश के अधिकांश घरों तक शौचलय की सुविधा पहुंचाने का प्रयास सरकार कर रही हैं। 


शाकाहार और सादगी 

गाँधी जी के विचारों में शाकाहार और सादगी भी महत्वपूर्ण  स्थान रखता है। वैसे देश में कई प्रधानमंत्री आये और देश पर राज किया परन्तु सादगी पूर्ण जीवन की मिसाल कम ही कायम कर सके। विदेश एवं ब्रांडेड का शौक़ हो या जीवन के सादगीपूर्ण व्यवहार में भी कम लोग गाँधी जी के इस सिद्धांतों को साकार कर सके। शाकाहार चूँकि एक मानवीय व्यावहारिक पहलू है परन्तु न्यायपालिका एवं कार्यपालिका ने इस व्यक्तिगत निर्णयों की श्रेणी में रखकर तरजीह नहीं दी। 

चित्रों, भवनों और सड़कों तक सिमटें 

महात्मा गाँधी मार्ग, एम. जी.  रोड, गाँधी भवन, संग्राहलय, गाँधी वाचनालय तक सिमित रहकर गाँधी जी के विचारों को जन-जन तक नहीं पहुंचा पाई, कांग्रेस अब दुःखी है। स्वच्छता एक बड़े आंदोलन के रूप में विकास की नई गाथा  लिख रहा है। राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ को गाँधी का हत्यारा संगठन बताकर अपनी राह तों आसान की परन्तु गाँधी जी के सिद्धांतों को तरजीह नहीं मिल पाई 

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नमन

विचारों की अब गाथा नए स्वरूप में लिखी जा रही है। आज गाँधी जी की 150 वीं जयंती पर राष्ट्र उनको नमन कर रहा है, आओ संकल्प ले !
स्वदेशी अपनाये ! 
अहिंसा के पथ को स्वीकार करे ! 
सत्य का अनुसरण करे !
सादगी का जीवन जियें !
परन्तु अब देश का बंटवारा न हो ! इसका भी संकल्प करे। 

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पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 

शनिवार, 29 सितंबर 2018

सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "

सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "
सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "

एक गीत है " ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर तो पहले आ के मांग ले !" घर को लेकर गीतकरो ने कई गीत लिखें।  नेताओं ने बहुत सपने दिखाए, फिल्म निर्देशक ने "नायक" फिल्म  में झुग्गी-झोपडी के लोगो को एक दिन के मुख्यमंत्री काल में घर दिलावा दिए। सपनों का यह कार्य कभी गरीबों के जीवन में हकीकत बन कर सामने आएगा, ऐसा लगता नहीं था। 2014 चुनावों के पश्चात देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  जो योजनाएं भारत भूमि पर हकीकत की दुनिया में उतरी, उसमें "प्रधानमंत्री आवास योजना" की अहम् भूमिका हैं। झुग्गियों में रहकर जीवन यापन कर रहे लोगो को पक्की छत मिली और ' वो तमाम सुविधाएँ जो सामान्य मानवीय जीवन के लिए परम आवश्यक हैं ' जुटाना प्रारम्भ का दी। धीरे-धीरे चले मकान निर्माण की यह शृंखला अब बड़े स्वरूप में हमारे सामने आ रही हैं। किसी भी शहर का समग्र विकास न हो तो बड़ा शहर भी अपनी झुग्गियों को देखकर रोता  नज़र आता हैं। अब शहरों की झुग्गियों का वातावरण पूर्व स्वरुप में न भी बदला हो मगर ग्रामीण क्षेत्रों में पंच-सरपंचों के माध्यम से कच्चे मकानों में बदलाव नज़र आने लगा हैं। 


राजनीति भी तेज़ हो गई हैं 

प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्मित घरों में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के चित्रों वाली टाइल्स को दीवालों पर लगाया जा रहा है। इससे उस घर में आवास करने वाले तो गौरव का अनुभव कर रहे है, मगर विरोधियों को उन चित्रों से कष्ट का अनुभव हो रहा हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के मित्रों द्वारा इस बाबत टिप्पणियां आने लगी है। वर्षों से यह देश नेहरू, इंदिरा, राजीव के चित्र एवं नामों से उल्लेखित योजनाओं को सहजता से स्वीकार कर रहा है, परन्तु पहली बार पक्के आवासीय मकान बनाकर लोगो के जीवन को खुशहाल और संजीदा बनाने वाले प्रधानमंत्री के चित्र से विपक्ष दुखी हैं। ये देश सन 1975 से "गरीबी हटाओ !" का नारा झेल रहा है। न गरीबी हटी, न गरीब के हालात बदले ! अब जब शासन की विभिन्न योजनाएं सीधे गरीब के बैंक अकाउंट, रसोई में गैस, सर पर छत एवं उत्तम स्वास्थ, शिक्षा  जैसी योजनाओं के साथ बदलाव दिखा रही है, तो विपक्षी आगामी 2019 में भी मोदी के विकल्प के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं का पा रहे है। 



स्वच्छता अभियान की भी भूमिका अहम् 

प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ-साथ आम नागरिक के जीवन में बदलाव लेन में स्वच्छता अभियान की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। झुग्गी-झोपड़ियों और गावों में पक्के मकान निर्माण के साथ-साथ शौचालय का भी निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया। स्वच्छता के क्षेत्र में शौचालय निर्माण से भी दूषित वातावरण में कमी आई हैं, सरकारी प्रयासों के साथ-साथ दैनदिन जीवन में जनभागीदारी एवं समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली सामाजिक संस्थाएं भी आगे आई हैं। इन सबके सकल प्रयासों से हम एक उत्तम राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर हो पा रहे हैं। 

मानसिकता में बदलाव 

मनुष्य के जीवन जीने की पद्धति में विकास होता है, तो उसकी समग्र सोच भी परिवर्तित होने लगती है। मानसिकता यदि उच्च दिशा की और कार्य करती है, तो व्यक्ति विकासशील हो जाता हैं। सरकारी प्रयास भी उस दिशा में काम करते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना से सिर्फ आवास का बदलाव नहीं सम्पूर्ण मानसिकता का बदलाव किया है। जब व्यक्ति झोपडी से निकलकर पक्के मकान की ओर जाता है, तो वह स्वयं भी विकास के मार्ग की ओर जाने का प्रयास करने लगता हैं। 

"अच्छे दिन आएंगे" जुमला नहीं 

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2014 चुनावों के पूर्व अच्छे दिन आने का नारा दिया था, अब जब हज़ारों मकान बनकर तैयार हैं। आम नागरिकों के मन में पक्के मकान में रहने का सुख अर्जित हो रहा हैं। उज्ज्वला योजना से घरों में गैस कनेक्शन मिल रहे हैं।  बिजली, पानी, सड़क की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हुई हैं। शौचालयों के निर्माण एवं स्वच्छता से से स्वास्थ पर उत्तम प्रभाव पड़ा हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि के माध्यम से कम मूल्य पर दवाईयां उपलब्ध कराई जा रही हैं। केंद्र सरकार घोटालों की सरकार न होकर काम करने वाली ईमानदार सरकार हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से पाकिस्तान को उसके घर में मारने की हिम्मत सरकार जूता पाई हैं, तो क्या यह अच्छे दिन नहीं ? काम अधूरे है, मगर पुरे होंगे !

सपनो की राह बड़ी होती हैं 

मनुष्य के सपनों की राह बड़ी होती है, जेब भले छोटी हो, चाह बड़ी होती है ! "हाथ से हाथ मिलाकर चल बन्दे हकीकत की राह बड़ी होती है"। 70 साल तक कार्य करने वाली सरकारों ने देश के विकास के लिए कुछ नहीं किया, यह कहना कदापि ठीक नहीं ! जो भी प्रधानमंत्री बने सपने देश के विकास की राह ही चुनी मगर आम व्यक्ति के जीवन में सरकार के निर्णयों का प्रभाव नज़र आये, यह अब सामने आने लगा है ! पहले भी हमने अटल जी को मात्र पाँच साल देकर सत्ता से बहार कर दिया, मुझे लगता है अब ऐसा नहीं होगा ! एक बार पुनः यह सरकार आएगी और 2022 तक जो कार्य पूर्ण करने का स्वनिर्माण प्रधानमंत्री जी ने लिया है, उसें पूर्ण करेगी। 


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खली हुई आँखों से हमने 
सपना सच होते देखा है !

राह कठिन बड़ी थी फिर भी 
मंजिल को छूते देखा हैं !!

आगे दौर कठिन आएगा 
जात-पात पर लड़वाएंगे !

हमकों नहीं भ्रमित होना अब 
मंजिल को पाते रहना है !!

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पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 


रविवार, 23 सितंबर 2018

पैकेज पध्दति हमारे संस्कार नहीं !

package system
पैकेज पध्दति हमारे संस्कार नहीं !


आज का देखों दोस्तों कल किसने देखा है ?  सरकारी नौकरियों के लिए अब समय निकल चूका है, प्राइवेट नौकरियां एवं स्वयं का व्यवसाय शासन की योजनाओं में शामिल है। मासिक वेतन कितना है ? यह प्रश्न बेमानी सा लगने लगा है। सब एक-दूसरे से पूछतें है, आपका पैकेज कितना है ? पैकेज संस्कृति ने हर व्यक्ति को ठेका पद्धति में लेकर खड़ा कर दिया है। व्यक्ति नौकरियों में अनुशासित होकर काम नहीं कर पाए और काम कराने वाले पर भी काम का दबाव हो तो कार्य पैकेज में अच्छा लगने लगता है।
विदेशों से नौकरियों पर जाने वाले लोगों के बारे में चर्चा सुनते थे, जब डॉलर को रूपए में परिवर्तित कर मेरे बच्चे का अमेरिका में सत्तर लाख रूपए का पैकेज है, कोई कहता है - पचास लाख का पैकेज है तो भारत में नौकरी करने वाले जो मासिक वेतन पर कार्य करतें थे अपने आप को पीछे की पंक्ति का मानने लगे। सरकारी नौकरियां कम होने लगी प्राइवेट नौकरियों में काम के बदले दाम की संस्कृति को बढ़ावा मिला और यहाँ भी पैकेज संस्कृति आ गई और कब संस्करों में घुल गई पता ही नहीं लगा।



सभी व्यवस्थाओं पर लागू 

धीरे-धीरे पैकेज सिस्टम सभी व्यवस्थाओं पर लागू होने लगा शादी में हलवाई, टेंट, लाइट, धर्मशाला हो या ब्यूटी पार्लर आदि सभी कार्य पैकेज सिस्टम में लागू हो गए है। समय का अभाव, भाव-ताव की झंझट और सुविधाओं एवं कम कष्ट में अधिक शौक पूरे करने की जो आदत आज की मानवीय स्थिति में व्यक्ति को पड़ गई है, उसके कारण मनुष्य पैकेज में कार्य देकर निश्चिंता का भाव प्रकट करता है। विगत दिनों एक व्यापारिक मित्र से पूछने पर उसने बताया कि हमारे यहाँ चार्टेड अकाउंटेंट, फॅमिली डॉक्टर का परामर्श एवं कई पारवारिक व्यवस्थाएं पैकेज पर होती है। जिसके कारन काम रुकता नहीं हैं। वार्षिक पैकेज होने से साल में एक बार भुगतान कर संकट से मुक्त हो जाते है।



पूजा-पाठ एवं मंदिरों में पूजा पैकेज 

इन दिनों पूजा पाठ और मंदिरों में भी पैकेज के कारन कुछ लेकर नहीं जाना पड़ता है। पंडित जी फूल-माला, कुंकु, नैवैद्य आदि लेकर सभी व्यवस्थाएं स्वयं जुटा देते है, जिससे भक्तों को  अभिषेख, पूजा, यज्ञ, जनेऊ, विवाह, कर्मकांड सभी के लिए मात्र पैकेज का मूल्य पूछकर भुगतान करना होता है। सेवा के बदले सेवा का यह तरीका मनुष्य को व्यावहारिक बनाने की अपेक्षा क्रियात्मक बना रहा है। 


यह तो हद हो गई 

इन दिनों पकडे पाँच नक्सलवादी संगठन के लोगों ने खुलासे में बताया की हमारे संगठन में आतंक के लिए कार्य नियोजन के लिए पैकेज तय किये जाते हैं। प्रत्येक संगठन अपने नुमाइंदे को निश्चित धनराशि उपलब्ध कराकर निश्चित कार्य सौंपता हैं। पहले भी अपराध जगत में "सुपारी" शब्द का उपयोग किसी की हत्या के पैकेज के रूप में किया जाता था और उस जगत के लोग उसे गर्व का विषय मानते थे। पैकेज तय करते समय उत्तरदायित्व की गंभीरता एवं मन में कार्य करने की हटधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण होती है। जिवंत कार्यक्षमताओं वाले जीवट व्यक्तित्व ही पैकेज की महत्ता को प्राप्त करते हैं। 



चिकित्सा के क्षेत्र में पैकेज की सफलता 

निजी चिकित्सालयों ने पैकेज को अभिनव प्रयोग के रूप में लिया और सफल हो गए। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्टार पर चलने वाले चिकित्सालय समूहों ने ह्रदय, किडनी, कैंसर इत्यादि गंभीर बिमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए पैकेज का निर्माण किया। चिकित्सालय में पाँच सितारा संस्कृति में मेडिक्लेम यानि चिकित्सा बीमा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पेशेंट को भर्ती कराने के पश्च्यात सम्पूर्ण देखभाल चिकित्सालय द्वारा की जाती हैं। आर्थिक रूप से सक्षम लोगो के लिए यह सब आसान हो गया हैं। 



भविष्य पर प्रभाव 

पैकेज संस्कृति का भविष्य पर प्रभाव कैसे होगा वर्तमान में यह कह पाना संभव नहीं परन्तु इतना तो तय है कि practical life में हम भावनाओ का हनन करते जा रहे हैं।  मानव ATM की तरह मशीनी जीवन जी रहा हैं। give n take की संस्कृति की जुड़वाँ इस पैकेज संस्कृति ने कमाई और सुविधाओं का जरिया तो खोज लिया परन्तु एक-दूसरे के सुख और दुःख में खड़े होकर सेवा भाव से काम करने की जो हमारी संस्कृति थी उसे धूमिल कर दिया है। वास्तु विनिमय से प्रारम्भ होने वाली भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य पैकेज पद्धति को स्वीकार तो है परन्तु उसकी सफलता संदेहास्पद ही लगती है। हमें पुनः अपने संस्कारों पर आना पड़ेगा, हम मिलकर काम करने की अपनी पध्दति से ही सुखी रह पाएंगे।  यही हमारी जीवन पद्धति है और यही हमारे संस्कार हैं। 


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गुरुवार, 13 सितंबर 2018

विनायक तेरे द्वारे


मैं करूँ नमन "विनायक"
                                    रंग भर दूँ तेरे "द्वारे"

काम और सम्मान अपना है 
                                    न्योछावर तेरे "द्वारे"

रंग कहते है ये "जीवन" नाम 
                                         रंगो भरा हो तेरे "द्वारे"

हर रंग अपने संग सारे          
                                सपनों से भरा पड़ा है तेरे "द्वारे" 

सपने मेरे नहीं छुपे हैं सब 
                                               सतनाम हो तेरे "द्वारे" 

पूर्ण करना मेरी ये विनती 
                                                मैं अर्पण हूँ तेरे "द्वारे"

हे सहारा एक तू ही भगवान 
                                              अब नैया तेरे "द्वारे"

मैं करूँ नमन "विनायक"
                                                  रंग भर दूँ तेरे "द्वारे"

सोमवार, 10 सितंबर 2018

क्या "तिलक" के स्वप्न को साकार करेंगे ?

LOKMANYA TILAK GANESHOTSAV
क्या "तिलक" के स्वप्न को साकार करेंगे ? 


"तिलक" के स्वप्न को पूर्ण,
                                     कर पाएंगे क्या आज भी !
समरसता के दिव्या मंत्र,
                                     सीखा सके यदि आज भी !!

स्वराज्य प्राप्ति का नारा देकर,
                                 धर्म सह राष्ट्र धर्म साध लिया !
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
                                    सब ने देश का काम किया !!

"गणेशोत्सव" के माध्यम से हम,
                                         दुश्मन से लड़ पाए थे !
सभी धर्मों से तब भी,
                                                गणपति पुजवायें थे !! 

प्रजातंत्र के संस्कारो की,
                                    तिलक ने राह दिखाई थी !
स्वराज्य के अधिकार की,
                                           एक आवाज़ लगाई थी !!

उत्साह हममें आज भी है,
                                       उत्सव को मनवाने की !
संस्कारों को याद रहें सब,
                                          राष्ट्र धर्म संग जाने की !!

रविवार, 9 सितंबर 2018

क्या उनके लव मैरिज का परिणाम सही है ?

Bollywood love marriage & divorce
क्या उनके लव मैरिज का परिणाम सही है ?
समाज में विवाह नामक संस्कार सदैव प्रासंगिक रहे है और रहेंगे। समाज का कोई भी तबका इस संस्कार से वंचित नहीं रह पाता है। समाज में विवाह करना, धर्म आधारित संस्कारों के अनुसार विवाह करना, जाति के लड़के या लड़की के साथ विवाह करना हमारी जीवन पद्धति का अंग है।
                                                                                                     इन दिनों में भी संस्कारवान परिवारों के लिए यह सामान्य बात है, परन्तु भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में जब माता और पिता दोनों पैसा कमाने अपने रोजगार में व्यस्त हो बच्चों को अपने संस्कारों के अनुरूप ढाल पाने में सफल कम ही हो पा रहे हैं। सारे घरों में ऐसा ही हो रहा हैं, यह सोचना सही नहीं है! अपने बच्चों के संस्कारों के प्रति जागरूक रहने वाले परिवारों की संख्या भी कम नहीं हैं। 

अंतरजातीय विवाह की संख्या में वृद्धि 

इन दिनों प्रेम विवाह के मसलों में अंतरजातीय विवाह की संख्या में कई गुना वृद्धि हो गई है। सामाजिक संगठनों में युवा संगठनों की सक्रियता में कमीआई है।  बच्चों का रिश्तेदारी में, सामाजिक कार्यों में आने-जाने में अरूचि एवं प्रत्येक व्यक्ति की व्यवस्था पूर्ण जिंदगी उसका बड़ा कारन है। अंतरजातीय विवाह के के दुष्परिणाम सम्पूर्ण परिवार एवं अगली दो पीढ़ियों पर पड़ते हैं, यह बात समझने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। कई अंतरजातीय विवाह माता-पिता की सहमति से भी संपन्न होते हैं। उनकी कामयाबी की सम्भावना थोड़ी अधिक होती है। इन दिनों कई समाजों में लड़कियों की संख्या में कमी के कारन भी विसंगतियां उत्पन्न हो रही है, जिससे समाज अंतरजातीय विवाह की और बाद रहा है। ऐसे में प्रेम विवाह में होने वाले अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता मिलने लगी हैं।

समाज में प्रभाव एवं पीढ़ी के सामने संकट 

दो अलग-अलग समाज के माता-पिता होने से बच्चों के सामने अपने रिश्तेदारों, संस्कारों, त्योहारों एवं अंततः किस धर्म को मान्यता प्रदान करे, यह संकट सामने आ जाता है। समाज में भी घर में आने वाली बहु के धर्म, समाज एवं संस्कार अलग होने का प्रभाव पड़ता है। 
हमारे यहाँ मुसलमान + ब्राह्मण, सिंधी + राजपूत, कायस्थ + ईसाई धर्म का एक दूसरे से वैवाहिक सम्बन्ध होने से वह समाज में मान्य हो पाना संकट का विषय हैं। कई बार प्रेम विवाह के समय जब माता या पिता इस सदमे को सहन नहीं कर पाने के कारन दम तोड़ देते है तो कई राज्यों में ओनर किलिंग जैसे मसले होकर प्रेमी जोड़ों की हत्या हो जाती हैं। 

उपाय मेरे विचार से 

मेरे अपने अनुभव से मैंने यह जाना है कि प्रेम और विवाह दो अलग-अलग न होकर एक ही है। प्रेम होकर स्वीकार्य विवाह सफल और स्वीकार्य विवाह पश्च्यात प्रेम हो जाए तो भी सफल ! विवाह दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का नहीं मिलान होता है। पहले कबीलाई संस्कृति में अपने ही समाज के लड़के से अपनी ही रिश्तेदारी में विवाह की परम्परा लम्बी चली आई है। प्रेमी जोड़ो को विवाह करते समय यह सोचना चाहिए की जीवन में प्रेम से भी बड़े रिश्तें और भी हैं। 


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परिवार के संस्कारों को साथ मिलाकर लायेगें !
आओ अब हम दोनों मिल नया संसार बसाएंगे !!

तेरी जाति ऊँची और मेरी जाति नीची क्यों हैं !
ऊँच-नीच के झगड़े में प्रेम मेरा गुम क्यों हैं !!

आओ मानव सिंद्धान्तो से नै रह पर जायेंगे !
प्रेम विवाह किया है फिर भी रस्में खूब निभाएंगे !!



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 पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

|| इको फ्रैंडली गणेश ||

Eco Friendly Ganesha
Eco Friendly Ganesha


पर्यावरण की सुध का देखो,
                              आया नया जमाना !
मिट्टी की मूरत अपने घर में,
                              जरूर आजमाना !
प्रकृति सीखा रही है हमको,
                                    मिटटी में मिल जाना !
जीवन में न करो झमेला,     
                                     एक दिन मिट ही जाना !
जहरीले रंगो से देखो,
                                     बिगड़ रहा है पानी !
नकली मिटटी की मूर्ति,
                                  से पुण्य करे है दानी !
आने वाली पीढ़ी को हरा,
                               गुलशन देना है !
इको फ्रेंडली गणेश जी का,
                                ही अब घर में डेरा है !

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

बंद हुआ कामयाब, लूट गई अर्थव्यवस्था

bharat band
बंद हुआ कामयाब, लूट गई अर्थव्यवस्था !

सुने हैं बाज़ार और लूट गई "अर्थव्यवस्था "
जात-पात की हुई लड़ाई और बिक गई "अर्थव्यवस्था"

उदास चेहरे, खाली गल्ले और चौक है सुने 
नेताओं की सुधर जाएगी इससे "अर्थव्यवस्था"

हिन्दू हित से बदल गई है देश में सारे "रास्ते" 
लूट-पाट में व्यस्त जो थे भटक गए है "रास्ते"

सुना मन है कुर्सी बिन नहीं जैम रही उनकी "व्यवस्था"
देश को बाँट सुख मिल जाये चल रही यही "व्यवस्था"

जो लड़ते दलित लड़ाई कोने में बैठे हैं 
सत्ता के चाबी न होने से हो गई खूब "हसाई"

समझ न आया कैसे बांटे और कैसे "लूटेंगे"
अध्यादेश का मौका मिलता है कोई नहीं "छूटेंगे"

चलना हमको अभी समझ कर और सुध रखना है 
भाई-भाई से हाथ मिलाकर ही हमको चलना है 

सोमवार, 3 सितंबर 2018

समरस समाज से ही देश का विकास संभव !

st/sc act, sapaks
SC/ST कानून 

सरकार SC/ST कानून का अध्यादेश लाकर अपने सबसे विश्वसनीय मतदाता के सामने कसौटी पर खड़ी है। देश में राष्ट्रवादी विचारधारा को सदैव सवर्ण समाज ने बढ़ावा दिया है। आज़ादी के पश्च्यात कांग्रेस ने अपने बुद्धि चातुर्य के बल पर देश में बंटवारे की राजनीती की, जिसे बाद में वोट बैंक पॉलिटिक्स भी कहा जाने लगा । 
           
                कांग्रेस की इस वोट बैंक पालिसी में मुस्लिमों और ईसाईयों को अल्पसंख्यक समाज का दर्जा देकर विशेष रियायतें देकर अपने साथ किया, वहीँ दलितों और वनवासियों को आरक्षण देकर अपने साथ किया। 

जनसंघ के ज़माने से संघ और राष्ट्रवादी विचारों को बनिया-ब्राह्मणों की पार्टी कहकर हांसिये पर रखा गया। अपने 60 वर्षों के शासन में कांग्रेस ने वोट बैंक का भरपूर उपयोग किया, परन्तु अल्पसंख्यकों की जीवन पध्दति में विशेष बदलाव आया हो ऐसा नज़र नहीं आया, और जब उन्हें समझ आया की हम चार पीढ़ियों से शहरों में पंचर की दुकाने ही चला रहे है। उन्होंने समाजवादी और अन्य दलों की ओर रुख कर लिया। यही अवसर था, जब मुस्लिम वोट छिटकने से कांग्रेस कमजोर हो गई।  भारत में 60 वर्षों से विपक्ष जो बिखरा था ! हिन्दू मतदाता जो बिखरा था ! वह एक हो गए। 
                                          2014 के चुनावों में हिन्दुओं के साथ कई स्थान पर मुस्लिम वोटर ने भी बदलाव के लिए वोट किया और भारतीय जनता पार्टी समर्थित N.D.A ने 313 सीटें जीतकर सरकार बनाई। ऐसे में अन्य दलों में हड़कंप मच गया, जो हिन्दू वोट वर्षों से बांटकर हिन्दू बहुल गणराज्य में कष्ट झेलकर दूसरे दर्जे पर था, अचानक मुख्य धारा में आ गया !


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ज़हर फैलाया है जनता को बांटकर :-60 सालों में देश में ऊँच-नीच, जात-पात मिटने का कोई प्रयास नहीं हुआ, सरकारों ने जहर भरकर हिन्दुओं को एक-दूसरे के सामने खड़ा किया ! हिन्दू, हिन्दू का दुश्मन बना रहा और मुस्लिम तो प्रश्न ही नहीं, वो तो सरकार का चहेता था। "जनसंघ/भा.ज.पा सांप्रदायिक पार्टी है" कहकर देश को बंटा रहने दिया। आरक्षण जो आम्बेडकर जी ने संविधान निर्माण के समय 10 वर्षों के लिए लागू किया था, को वर्षों तक चलता रहा। धीरे-धीरे आरक्षण में बढ़ोत्तरी होती गई और सवर्ण हांसिये पर चले गए। गरीबी हटाओं  का नारा देने वाली पार्टी ने कभी अमीर नहीं बनने दिया गरीबों को। उनकी गरीबी आज तक कम नहीं हो पाई। 


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अध्यादेश से हिंदुत्व की एकता पर संकट :- हिन्दू समाज में आपसी लड़ाई एक बार पुनः इस अध्यादेश के माध्यम से सड़कों पर आ गई है। उन्नति के शिखर पर चढ़ते हुए राष्ट्र जब अपने विकास की राह पकड़ता है, तो राजनितिक परिस्थितियां उस पर संकट के बदल मंडरा देती है। सवर्णो को अपने अस्तित्व की लड़ाई नज़र आ रही है परन्तु उत्तर प्रदेश के माध्यम से इस देश में 283 सीटें जीतकर जो अच्छे दिन लाने वाली सरकार आई है, उस पर एक विकत समस्या का निर्माण हो गया है। 

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समरसता का काम अधूरा न रह जाए :-साधु-संतों, ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं ने इस संपूर्ण हिन्दू समाज को एक साथ रहकर एक समरस समाज के निर्माण का जो मंत्र दिया था वह अब अधूरा ही रह जायेगा ऐसा भय नज़र आने लगा है। विपक्षी जानते है की समरस हिन्दू समाज ही एक उन्नत एवं विकासशील राष्ट्र के निर्माण का कारक बनेंगे। ऐसे में इस समरस समाज को तोड़कर ही अपने मंसूबो को पूरा किया जा सकेगा !

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राहों में कितनी अड़चन आ जाये !
हमको कोई डिगा न पाए !!
हम हिम्मत से काम करेंगे !
अपने बल पर अड़े रहेंगे !!
समरस समाज हो तो ही उद्धार !
समरस समाज देश का आधार !!
मिलजुल कर सब काम करेंगे,
ऊंच-नीच को दूर करेंगे !
देश का नव निर्माण करेंगे !!
राजनीती सत्ता की चाहत !
मानव को नहीं मिलती राहत !!
बंटवारे का उनका काम !
समरसता ही एक समाधान !!

शनिवार, 1 सितंबर 2018

पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

पकोड़ा व्यवसाय
पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग 

भारत जैसे विशाल देश में बेरोजगारी पर सरकारों के प्रयास ओछे अर्थात छोटे क्यों सिद्ध होते है।  यह विचार प्रत्येक नागरिक के मन में उठता है। बचपन में जब इंदिरा जी के शासन में "गरीबी हटाओ !" का नारा सुनता था ,तो लगता था की नेहरू परिवार की वंशज एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व की नारी ने यदि गरीबी हटाने का संकल्प लिया है तो पूर्ण होगा ही। 
                                   
 शनै शनै उम्र बढ़ती गई में वयस्क हो गया और गरीबी भी वयस्क हो गई पर हट नहीं पाई। सहिष्णु इंदिरा जी को "गरीबी" पर दया आ गई उन्होंने उसे यही बसा दिया। 
                                                                                                                    
                                                                             पंचवर्षीय योजनाओं का दौर चला, नये रोजगार, उद्योग, नौकरियां भी बढ़ी ! देश का विकास भी हुआ ! मगर गरीबी और बेरोजगारी इस देश से दूर न हो पाई। ऐसे में जब देश विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान बना रहा हो, विश्व के कई देश भारत में अपनी पूंजी लाकर व्यवसाय स्थापित कर रहे हों, बेरोजगारों की संख्या कम होने की गारंटी बन जाती है! मगर 15 साल की कांग्रेस सरकार एवं 4 साल का मोदी शासन भी इस विषय को गंभीरता से नहीं ले पाया। 
unemployment
पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

                                                                                                                                 हमारे देश में जनसँख्या के विकास पर कोई रोक नहीं है। सीमित भूमि, सीमित संसाधन एवं सरकारी प्रयास असफल हो जाते है। शासन को लगता है मेरी कार्य पद्धति तो उत्तम है फिर असफल कहाँ हुआ ! जब महंगाई के बढ़ने का कारण मांग और आपूर्ति होती है, तो बेरोजगारी का कारण जनसंख्या असंतुलन क्यों नहीं हो सकता !
                                                                   हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने "पकोड़े वाला" बयान क्या दिया, सब चढ़ बैठें उन पर ! मगर सोचा नहीं रोजगार क्या होता है। जीवन जीने के लिए पैसा और पैसा कमाने के लिए ईमानदारी से किया जाने वाला काम मिल जाये तो वह रोजगार नहीं है क्या ? मैं जिस शहर में रहता हूँ, वहाँ के एक मुख्य मार्ग पर चाट-पकोड़ी के ठेले बहुत प्रसिध्द थे। सरकारें बदलती है ! व्यवस्थाएँ बदलती है ! नगर में नगर पालिका ने शहर की व्यवस्थायें बदलने का जब निर्णय लिया तो सड़क की सभी अवैध अतिक्रमण की दुकाने हटाई गई, उसमें चाट-पकोड़ी के ठेले भी थे।  जनता को लगा बेचारे चाट-पकोड़ी के ठेले वाले कहाँ जायेंगे, मगर उसी सड़क पर सबसे बड़े चौराहे पर लगभग 80 लाख में बिकने वाली दुकान चाट-पकोड़ी वालों ने खरीद ली। नगर की जनता समझ गई यह मात्र रोजगार नहीं छोटा-मोटा उद्योग है, क्यूंकि सामान्य परिवार एवं आम आदमी 60-70 लाख की दूकान खरीदने का माद्दा नहीं रखता है। 
pradhanmantri awas yojana
प्रधानमंत्री आवास योजना 

                                              व्यवसाय, उद्योग-दुकाने और सरकारी नौकरियाँ ही रोजगार नहीं होते, जो मनुष्य की घरेलु एवं जीवन जीने की समस्या का निदान कर दे वही रोजगार है। सत्तर के दशक में "गरीबी हटाओ !"का नारा देने वाले दल के प्रमुख राहुल गाँधी युवाओं के विषय पर बेरोजगारी का चिंतन करते है। वर्तमान मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगो को पक्की छत बनाने के लिए ऋण उपलब्ध कराने से मकान निर्माण, शौचालय निर्माण से जुड़े दिहाड़ी वाले मजदुर हो या सीमेंट उद्योग, टाइल्स उद्योग या सेनेटरी व्यवसाय से जुड़े लोगो को उसके व्यवसाय में तेज़ी लाकर रोजगार में बढ़ावा देने का प्रयास किया है। 
होटल हो या चाट-पकोड़ी मजाक बनाने की अपेक्षा लोगो के घरों में चूल्हा जले, पेट भरें, कोई भूखा न रहे तथा आम नागरिकों के जीवन में छोटा ही सही पर बदलाव दिखे तभी उन्नति के शिखर पर भारत कार्य कर सकेगा। 

बुधवार, 29 अगस्त 2018

बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा मिला !

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बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा मिला !
इन दिनों बच्चों को गोद लेने का चलन समाज में गति पकड़ रहा है। प्रगतिशील भारत अब व्यवहारशील एवं भावनाशील क्षेत्र में एकलजीवन जी रहे माता-पिता को अपने विभिन्न विभागों एवं एन.जी.ओ के माध्यम में सहयोग प्रदान कर रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग एवं जिलाधीश एवं जिला पुलिस अधीक्षक की भूमिकाएं सक्रिय हो सकती है।

निःसंतान दम्पत्तियों के लिए अवसर :- समाज में एक और एन.एस.व्ही, टेस्ट ट्यूब बेबी एवं उन्नत तकनीक के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान की ओर अग्रसर हो रही है, वहीं समाज में गोद लेने एवं सुविधाजनक गोपनीय एवं व्यवस्थित Adoption के क्षेत्र में भी दम्पत्तियों की रूचि बढ़ रही है। नवजात शिशुओं का त्याग, अवांछित गर्भ, एवं अवैध संतान समाज में विकत परिस्थितियों में जीवन यापन करें, उसकी अपेक्षा उसे समाज में माता-पिता के साथ न्यायपूर्ण एवं सम्मानित जीवन जीने को मिलता है। जो समाज के लिए एक उन्नत एवं प्रगतिशील कदम है।
sushmita sen with her daughters

yash johar son of karan johar, karan johar with his son yash johar
लक्ष्य मिलता है जीवन को :- बॉलीवुड अभिनेत्री सुष्मिता सेन के लड़की को गोद लेने से एक नई परम्परा प्रारम्भ की, जिसे आगे बढ़ाकर फिल्म निर्माता/निर्देशक करण जौहर एवं अन्य व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बन रही है। अब आम नागरिक भी इस दिशा की ओर अपनी सोच आगे बढ़ा रहे है। समृद्ध,विकसित एवं उच्च शिक्षित समाज में सरकारी नौकरियां हो या उच्च स्तरीय व्यवसाय व्यक्ति धन की प्रचुरता होने के पश्चात भी जीवन में अभाव एवं तनावग्रस्त जीवन यापन करता है। एकाकीपन से कभी-कभी लक्ष्य विहीन जीवन अवसाद की स्थिति भी ले आता है। समय पर उचित निर्णय लेने से मनुष्य जीवन तनाव मुक्त होकर सबके साथ सुखी जीवन यापन करने की सोच भी नहीं पाता ! ऐसे में उसे अपने जीवन के बारे में यह सोचना चाहिए। 
cute baby child with his parents
Social change about child adoption
समय एवं समाज में बदलाव :- एक समय था, जब निःसंतान नारियों को बाँझ की उपमा देकर उनका अपमान किया जाता था और उनके निःसंतान होने को उनका व्यक्तिगत दोष मानकर घर-परिवार में प्रताड़ित किया जाता था। इस रोग का दोष इस पुरुष प्रधान समाज में सदैव नारियों को दिया, जोकि एकदम दिशा के विपरीत है।
girl child
बेटी बचाओ! बेटी पढ़ाओ !!
बेटियों को गोद लेना भी उत्साह है :- समाज में सबसे बड़ा एवं सकारात्मक बदलाव यह है की खानदान का नाम, परिवार की पीढ़ियों का भविष्य यह बातों को छोड़कर अब बेटियों को गोद लेने का भी उत्साह लोगो में बढ़ा है। समय पर इस चलन को समाज सहर्ष स्वीकार करे एवं हाथों-हाथ लें। 
childhood with parants

हर घर में  गूंजे किलकारी,
नहीं रहे अब कोई अनाथ !
हर बच्चे को पालक मिले,
तो बाद जाये सबका सम्मान !
माँ को मिले बच्चे का प्यार,
मिले बच्चों को ममता का उपहार !
पिता की छाया मिले और,
मिले घर का संसार !



बुधवार, 22 अगस्त 2018

संस्कृत स्वैच्छिक नहीं अनिवार्य भाषा बने !

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भारतीय संस्कृति के उत्थान में भाषा का विशेष योगदान है। हमारी देवभाषा "संस्कृत" जिसके माध्यम से यहाँ पुरातनयुगीन संस्कृति से ऋषि-मुनियों ने विश्व गुरु के रूप में सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने का कार्य किया। चार वेद हो या सुश्रुत एवं चरक संहिता के माध्यम से आयुर्वेद जैसे वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक औषधि के आधार पर उत्तम स्वास्थ शिक्षा का मार्गदर्शन प्रदान किया। 
                                                                                     नासा ने गत वर्ष अपने अनुसन्धान के आधार पर "संस्कृत भाषा" को विश्व की सरलतम एवं संक्षिप्त वाक्य में प्रस्तुत करने वाली भाषा बताया। वर्त्तमान में विश्व के कई देशों के विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों ने संस्कृत को आगामी युग में कम्प्यूटर के लिए सबसे सरलतम भाषा बताया जाने के बाद अपने अनिवार्य विषयों में सम्मिलित किया है। मेरे प्रदेश मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य है की यहाँ सत्ता की चाबी अपने पास रखने के लिए प्रचिलित कोर्सेज को चलने के लिए संस्कृत की तुलना ब्यूटिशियन के कोर्स से की गई। वर्तमान में मध्यप्रदेश में संस्कृत ऐच्छिक विषय के रूप में चलाया जा रहा है। संस्कृत की उपयोगिता बड़े इसके लिए सत्ताधीशों के प्रयास मात्र अपनी मातृ संस्था को खुश करने के लिए है। हमारे देश में संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनायें जाने की चर्चा पर सबसे घनघोर विरोध तमिलनाडु के  मुख्यमंत्री करूणानिधि ने किया। "जब एक पत्रकार ने उनसे कहा की आपका तो नाम ही संस्कृत के दो शब्दों करुणा + निधि से मिलकर बना है, तो उन्होंने कहा की यह दोनों शब्द तमिल के ही है, संस्कृत ने इन्हे चुराया है। बहुरंगी संस्कृतियों वाले इस देश में प्रत्येक राज्य अपनी भाषा और बोली के प्रति निष्ठावान है, परन्तु राष्ट्र की पहचान बनाने वाली हिंदी और अन्य भाषाओं की प्रणेता देव भाषा संस्कृत के मामले में सबका मन बहुत ही छोटा है। हमें संस्कृत भाषा के विकास की अन्य देशों के संस्कृत पर कार्य को देखकर सिख लेनी चाहियें।लन्दन के st. james school में संस्कृत अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। 




संस्कृत की कुछ रोचक बातें :-
  • संस्कृत में १०२ अरब ७८ करोड़ ५० लाख शब्द है।जो दुनिया की किसी भी भाषा में सबसे अधिक है। 
  • १९८७ में अमेरिका की फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार संस्कृत computer programing के लिए सबसे अच्छी भाषा है, क्योंकि इसकी व्याकरण programing से मिलती-जुलती है। 
  • अमेरिकन हिन्दू यूनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत भाषा में बात करने वाले व्यक्ति बीपी, मधुमेह,कोलेस्ट्रॉल आदि बिमारियों से मुक्त हो जाता है, क्योंकि संस्कृत में बातें करने से मानव शरीर का तांत्रिक तंत्र सक्रीय रहता है जिससे की मनुष्य का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है। 
  • दुनिया के १७ देशों में एक या अधिक विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नयी प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, पर संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में नहीं है। 
  • संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है। 
  • किसी और भाषा के मुकाबले सबसे अधिक शब्द होने के बावजूद संस्कृत में कम शब्द में वाक्य पूर्ण हो जाता है। 
  • नासा के पास संस्कृत में ताड़पत्रों पर लिखी ६० हज़ार पाण्डुलिपियाँ है जिन पर शोध किया जा रहा है। 


महर्षि पाणिनि को नमन 

महर्षि पाणिनि को नमन 
संस्कृत में अष्टाध्यायी ग्रन्थ का निर्माण कर संस्कृत के सूत्र देने वाले संस्कृत के आदिगुरु महर्षि पाणिनि को नमन ! ४० पन्नो में उन्होंने विश्व के समस्त देशों को भाषा का मार्ग दिखने में मदद प्रदान की। दक्षिपुत्र पाणिनि ने जिन ग्रंथों को पढ़ा उससे कई संकेतों के माध्यम से संस्कृत का विकास किया। पाणिनि ने इतिहास, भूगोल,अर्थशास्त्र, गणित एवं विज्ञान सभी विषयों का ज्ञान विकसित किया। 

हम अपेक्षा करेंगे संस्कृत विश्व में पढ़ी  जाये एवं राष्ट्र भाषा के रूप में उसे स्वीकार करें। 

सोमवार, 20 अगस्त 2018

हिम्मत ही अवसाद से बचाव का मार्ग है !

depression
मानव जीवन जिंदगी के हर कदम पर चुनौतियों से झूंझता नज़र आता है। रिश्तों की अहमियत हो या विश्वास पर उठता प्रश्न चिह्न ? दैनदिन जीवन में मनुष्य को हर कदम खुद को साबित करने के लिए उठाना पड़ता है। बचपन ही जीवन का ऐसा कार्यकाल होता है जब स्वयं-सिद्धता के विषय में हमें खुद को कम साबित करना पड़ता है, परन्तु प्रतिस्पर्धात्मक इस युग में हमें कभी-कभी अपने परिवार में तो कभी समाज में एक-दूसरे से झूझना पड़ता है। यहीं से हमारे लिए चुनौतियों का दौर प्रारम्भ होता है।
                                                                                           घर परिवार से बहार निकलकर भी देखें तो चुनौतियां और जीवन के उतर-चढ़ाव कहीं भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में जब वर्तमान का कालखंड अर्थयुग भी कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस अर्थयुग में कोई क्षण ऐसा आता है जबकि आप अपने कार्य में असफल होने लगते है,तब कई बातें आप स्वयं से पूछने लगते है जैसे :-

  • मैं क्यों असफल हो रहा हूँ ?
  • मेरी कार्यक्षमता में क्या कमी है ?
  • दूसरों की तुलना में मेरी योग्यता समाज और बाजार क्यों कम आंक रहा है ?
  • मैं अपने कार्य में क्या सुधार करूँ जिससे पुनः समय की दौड़ में शामिल हो जाऊँ ?
इन् समस्त प्रश्नो को लेकर जब आप अपने मित्रों के पास जाते है तो वे उपाय के स्थान पर समस्या के विस्तार पर चिंतन में लग जाते है। यही चिंतन जब मनुष्य एकांत में बैठकर सोचता है तो वह अवसाद अर्थात depression की स्थिति में पहुँच जाता है। हम मित्रता के साथ न्याय करने की सोचें तो असफल व्यक्तियों के साथ सफलता का मार्ग नहीं खोजा जा सकता है, यह हर व्यक्ति सोचता है और सफल व्यक्ति स्वयं पर नाज़ करके इतराता फिरता है। उसे यह दिखाई नहीं देता की जीवन के जिस उतार चढ़ाव को आज एक मित्र भुगत रहा है, कल यह दिन उसके साथ में आ सकता है और जब यह दिन उसके साथ आएंगे तो मित्रों के आभाव में क्या वह उस परेशानी के घेरे से बहार आ पायेगा? परन्तु सफलता का नशा असफल मित्र को सहायता तो दूर उसे मजाक बनाकर चर्चा में लाने की स्थिति भी निर्मित करता है। जीवन के उतार चढ़ाव के क्षण किस उम्र में आते है यह भी महत्वपूर्ण विषय है और इससे कैसे निकला जाय यह उससे बड़ा प्रश्न है क्योंकि हालातों का मारा व्यक्ति यदि अकेलेपन को अपना मित्र बना लेगा तो अवसाद की स्थिति निश्चित है, परन्तु समाज में रहकर यदि आपमें परिस्थितियों से जुझने की प्रवृति अपने अंदर निर्मित कर ली  तो शायद आप समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति होकर भी कभी मुख्य धारा का पात्र बन सकते हैं। आप अपने मन में एक ही बात सोचे :-
"मैं हार का नहीं जीत का साथ धरूँ !
मैं कभी नहीं हार को स्वीकार करूँ !!
हार और जीत दो सीढ़ियां है, जीवन की !
क्यों न मैं दोनों को हँसते-हँसते पार करूँ !!"  
मित्र जीवन की पूंजी है मगर हिम्मत जीवन की कीमत ! यदि हम पूँजी हासिल करेंगे तो हिम्मत यानी कीमत भी मिल जाएगी और यदि हम मित्र नहीं जुटा पाये तो हर क्षण प्रति क्षण एकांत हमें घेरने लगेगा समाज से जुड़ना और नहीं जुड़ना बहुत सामान्य प्रक्रिया है परन्तु दोनों के परिणाम सामान्य नहीं है। समाज में सफल को स्वीकार्यता तो मिलती है परन्तु उसको विरोधो का भी सामना करना पड़ता है और असफल व्यक्ति तो स्वयं ही स्वयं का विरोधी हो जाता है और जब हम स्वयं के विरोधी होंगे तो हमारी हिम्मत एवं समाज में सबके साथ मिलकर कार्य करने की स्वीकार्यता ही हमारी पूंजी होगी।


हम एकाकी होकर जीवन जीयें भी क्यों ?


हमारे जीवन की चिंता क्या हमारा एकाकीपन दूर कर देगा कदापि नहीं ! ऐसे में हम यह सोचे की यदि समाज हमारी असफलताओं पर टिप्पणी कर रहा है तो क्या समाज में सफल व्यक्ति को शत प्रतिशत लोग स्वीकार कर रहे हैं। जवाब आपको अपने आप मिल जायेगा आपकी सफलता के कई विरोधी होंगे !


मन सदा एक ही चिंतन करें !

"जीत हो या हो हार, सभी मुझे स्वीकार है !
गम हो या हो खुशियां, हर कदम पर प्यार है!!
कर दो ईश्वर इतना काम, सभी करे मुझको स्वीकार !
कभी ना हो मन में अवसाद, हर क्षण हो हिम्मत का साथ !!
हिम्मत मेरी साथी बनकर, जब जीवन में आएगी !
खुशियां और स्वाभिमान मन में भरकर जाएगी !!

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नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...