सोमवार, 20 अगस्त 2018

हिम्मत ही अवसाद से बचाव का मार्ग है !

depression
मानव जीवन जिंदगी के हर कदम पर चुनौतियों से झूंझता नज़र आता है। रिश्तों की अहमियत हो या विश्वास पर उठता प्रश्न चिह्न ? दैनदिन जीवन में मनुष्य को हर कदम खुद को साबित करने के लिए उठाना पड़ता है। बचपन ही जीवन का ऐसा कार्यकाल होता है जब स्वयं-सिद्धता के विषय में हमें खुद को कम साबित करना पड़ता है, परन्तु प्रतिस्पर्धात्मक इस युग में हमें कभी-कभी अपने परिवार में तो कभी समाज में एक-दूसरे से झूझना पड़ता है। यहीं से हमारे लिए चुनौतियों का दौर प्रारम्भ होता है।
                                                                                           घर परिवार से बहार निकलकर भी देखें तो चुनौतियां और जीवन के उतर-चढ़ाव कहीं भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में जब वर्तमान का कालखंड अर्थयुग भी कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस अर्थयुग में कोई क्षण ऐसा आता है जबकि आप अपने कार्य में असफल होने लगते है,तब कई बातें आप स्वयं से पूछने लगते है जैसे :-

  • मैं क्यों असफल हो रहा हूँ ?
  • मेरी कार्यक्षमता में क्या कमी है ?
  • दूसरों की तुलना में मेरी योग्यता समाज और बाजार क्यों कम आंक रहा है ?
  • मैं अपने कार्य में क्या सुधार करूँ जिससे पुनः समय की दौड़ में शामिल हो जाऊँ ?
इन् समस्त प्रश्नो को लेकर जब आप अपने मित्रों के पास जाते है तो वे उपाय के स्थान पर समस्या के विस्तार पर चिंतन में लग जाते है। यही चिंतन जब मनुष्य एकांत में बैठकर सोचता है तो वह अवसाद अर्थात depression की स्थिति में पहुँच जाता है। हम मित्रता के साथ न्याय करने की सोचें तो असफल व्यक्तियों के साथ सफलता का मार्ग नहीं खोजा जा सकता है, यह हर व्यक्ति सोचता है और सफल व्यक्ति स्वयं पर नाज़ करके इतराता फिरता है। उसे यह दिखाई नहीं देता की जीवन के जिस उतार चढ़ाव को आज एक मित्र भुगत रहा है, कल यह दिन उसके साथ में आ सकता है और जब यह दिन उसके साथ आएंगे तो मित्रों के आभाव में क्या वह उस परेशानी के घेरे से बहार आ पायेगा? परन्तु सफलता का नशा असफल मित्र को सहायता तो दूर उसे मजाक बनाकर चर्चा में लाने की स्थिति भी निर्मित करता है। जीवन के उतार चढ़ाव के क्षण किस उम्र में आते है यह भी महत्वपूर्ण विषय है और इससे कैसे निकला जाय यह उससे बड़ा प्रश्न है क्योंकि हालातों का मारा व्यक्ति यदि अकेलेपन को अपना मित्र बना लेगा तो अवसाद की स्थिति निश्चित है, परन्तु समाज में रहकर यदि आपमें परिस्थितियों से जुझने की प्रवृति अपने अंदर निर्मित कर ली  तो शायद आप समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति होकर भी कभी मुख्य धारा का पात्र बन सकते हैं। आप अपने मन में एक ही बात सोचे :-
"मैं हार का नहीं जीत का साथ धरूँ !
मैं कभी नहीं हार को स्वीकार करूँ !!
हार और जीत दो सीढ़ियां है, जीवन की !
क्यों न मैं दोनों को हँसते-हँसते पार करूँ !!"  
मित्र जीवन की पूंजी है मगर हिम्मत जीवन की कीमत ! यदि हम पूँजी हासिल करेंगे तो हिम्मत यानी कीमत भी मिल जाएगी और यदि हम मित्र नहीं जुटा पाये तो हर क्षण प्रति क्षण एकांत हमें घेरने लगेगा समाज से जुड़ना और नहीं जुड़ना बहुत सामान्य प्रक्रिया है परन्तु दोनों के परिणाम सामान्य नहीं है। समाज में सफल को स्वीकार्यता तो मिलती है परन्तु उसको विरोधो का भी सामना करना पड़ता है और असफल व्यक्ति तो स्वयं ही स्वयं का विरोधी हो जाता है और जब हम स्वयं के विरोधी होंगे तो हमारी हिम्मत एवं समाज में सबके साथ मिलकर कार्य करने की स्वीकार्यता ही हमारी पूंजी होगी।


हम एकाकी होकर जीवन जीयें भी क्यों ?


हमारे जीवन की चिंता क्या हमारा एकाकीपन दूर कर देगा कदापि नहीं ! ऐसे में हम यह सोचे की यदि समाज हमारी असफलताओं पर टिप्पणी कर रहा है तो क्या समाज में सफल व्यक्ति को शत प्रतिशत लोग स्वीकार कर रहे हैं। जवाब आपको अपने आप मिल जायेगा आपकी सफलता के कई विरोधी होंगे !


मन सदा एक ही चिंतन करें !

"जीत हो या हो हार, सभी मुझे स्वीकार है !
गम हो या हो खुशियां, हर कदम पर प्यार है!!
कर दो ईश्वर इतना काम, सभी करे मुझको स्वीकार !
कभी ना हो मन में अवसाद, हर क्षण हो हिम्मत का साथ !!
हिम्मत मेरी साथी बनकर, जब जीवन में आएगी !
खुशियां और स्वाभिमान मन में भरकर जाएगी !!

1 टिप्पणी:

  1. ईश्वर ने दी है जिंदगी क्यों उसे बेहाल करें! मित्रों के साथ जियें खुशियों से मालामाल करें|

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