शनिवार, 1 सितंबर 2018

पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

पकोड़ा व्यवसाय
पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग 

भारत जैसे विशाल देश में बेरोजगारी पर सरकारों के प्रयास ओछे अर्थात छोटे क्यों सिद्ध होते है।  यह विचार प्रत्येक नागरिक के मन में उठता है। बचपन में जब इंदिरा जी के शासन में "गरीबी हटाओ !" का नारा सुनता था ,तो लगता था की नेहरू परिवार की वंशज एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व की नारी ने यदि गरीबी हटाने का संकल्प लिया है तो पूर्ण होगा ही। 
                                   
 शनै शनै उम्र बढ़ती गई में वयस्क हो गया और गरीबी भी वयस्क हो गई पर हट नहीं पाई। सहिष्णु इंदिरा जी को "गरीबी" पर दया आ गई उन्होंने उसे यही बसा दिया। 
                                                                                                                    
                                                                             पंचवर्षीय योजनाओं का दौर चला, नये रोजगार, उद्योग, नौकरियां भी बढ़ी ! देश का विकास भी हुआ ! मगर गरीबी और बेरोजगारी इस देश से दूर न हो पाई। ऐसे में जब देश विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान बना रहा हो, विश्व के कई देश भारत में अपनी पूंजी लाकर व्यवसाय स्थापित कर रहे हों, बेरोजगारों की संख्या कम होने की गारंटी बन जाती है! मगर 15 साल की कांग्रेस सरकार एवं 4 साल का मोदी शासन भी इस विषय को गंभीरता से नहीं ले पाया। 
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पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

                                                                                                                                 हमारे देश में जनसँख्या के विकास पर कोई रोक नहीं है। सीमित भूमि, सीमित संसाधन एवं सरकारी प्रयास असफल हो जाते है। शासन को लगता है मेरी कार्य पद्धति तो उत्तम है फिर असफल कहाँ हुआ ! जब महंगाई के बढ़ने का कारण मांग और आपूर्ति होती है, तो बेरोजगारी का कारण जनसंख्या असंतुलन क्यों नहीं हो सकता !
                                                                   हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने "पकोड़े वाला" बयान क्या दिया, सब चढ़ बैठें उन पर ! मगर सोचा नहीं रोजगार क्या होता है। जीवन जीने के लिए पैसा और पैसा कमाने के लिए ईमानदारी से किया जाने वाला काम मिल जाये तो वह रोजगार नहीं है क्या ? मैं जिस शहर में रहता हूँ, वहाँ के एक मुख्य मार्ग पर चाट-पकोड़ी के ठेले बहुत प्रसिध्द थे। सरकारें बदलती है ! व्यवस्थाएँ बदलती है ! नगर में नगर पालिका ने शहर की व्यवस्थायें बदलने का जब निर्णय लिया तो सड़क की सभी अवैध अतिक्रमण की दुकाने हटाई गई, उसमें चाट-पकोड़ी के ठेले भी थे।  जनता को लगा बेचारे चाट-पकोड़ी के ठेले वाले कहाँ जायेंगे, मगर उसी सड़क पर सबसे बड़े चौराहे पर लगभग 80 लाख में बिकने वाली दुकान चाट-पकोड़ी वालों ने खरीद ली। नगर की जनता समझ गई यह मात्र रोजगार नहीं छोटा-मोटा उद्योग है, क्यूंकि सामान्य परिवार एवं आम आदमी 60-70 लाख की दूकान खरीदने का माद्दा नहीं रखता है। 
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प्रधानमंत्री आवास योजना 

                                              व्यवसाय, उद्योग-दुकाने और सरकारी नौकरियाँ ही रोजगार नहीं होते, जो मनुष्य की घरेलु एवं जीवन जीने की समस्या का निदान कर दे वही रोजगार है। सत्तर के दशक में "गरीबी हटाओ !"का नारा देने वाले दल के प्रमुख राहुल गाँधी युवाओं के विषय पर बेरोजगारी का चिंतन करते है। वर्तमान मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगो को पक्की छत बनाने के लिए ऋण उपलब्ध कराने से मकान निर्माण, शौचालय निर्माण से जुड़े दिहाड़ी वाले मजदुर हो या सीमेंट उद्योग, टाइल्स उद्योग या सेनेटरी व्यवसाय से जुड़े लोगो को उसके व्यवसाय में तेज़ी लाकर रोजगार में बढ़ावा देने का प्रयास किया है। 
होटल हो या चाट-पकोड़ी मजाक बनाने की अपेक्षा लोगो के घरों में चूल्हा जले, पेट भरें, कोई भूखा न रहे तथा आम नागरिकों के जीवन में छोटा ही सही पर बदलाव दिखे तभी उन्नति के शिखर पर भारत कार्य कर सकेगा। 

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