कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने ! |
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के इस युद में घर-घर एवं समाज में सामाजिक संस्थाओं के तौर पर कन्या पूजन एवं कन्या भोज के भी आयोजन किये गए। समाज में स्वीकार्य इस परम्परा को सभी ने सहर्ष स्वीकार किया। अनुसरण भी किया ! मगर क्या यह सब परम्पराओं का जीवन की सत्यताओं से जुड़ाव हो सकेगा, यह संभव नहीं लगता हैं।
कन्या में मातृशक्ति है स्वीकारना होगा
ये देश समाज कन्या के इस स्वरुप को किस रूप में स्वीकार कर रहा है, यह देखकर भी विकृत मानसिकता वाले लोगो की संख्या में कमी नहीं आई है। आज इस समाज में बेटियों को असुरक्षित माना जा रहा है। हम समाचार पत्रों और मिडिया के माध्यम से देखते है कि तीन वर्ष की कन्या से बलात्कार दो वर्ष की कन्या से अत्याचार तो समाज के विकृत रूप पर शर्म एवं घिन्नता का अनुभव होने लगता है। आज के इस युग में जब हमारे पास उन्नतशील होने की सभी परिस्थियाँ उपस्थित है। हम बेटी को दूसरे दर्जे की मान्यता कैसे दे सकते है। समाज में कई कुरीतियाँ जो हमने आज की असुरक्षा की भावना से उपजी थी। आज मोबाइल एवं कम्प्यूटर के युग में हमने आधुनिकता को तो स्वीकार किया है परन्तु स्त्री शक्ति को स्वीकारने में हमें बहुत देर हो गई हैं। अभी भी वक्त है, स्वीकार करने का ! समय पर यदि हम जाग गए तो हम एक उन्नत राष्ट्र के निर्माण की संकल्पना को साकार कर पाएंगे।
घर से देना होंगे स्त्री-शक्ति सम्मान के संस्कार
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले के अपने भाषण में कहा था कि हमें सिर्फ बेटियों पर नहीं बेटों पर भी नज़र रखनी चाहिए। बेटा रात को कितनी बजे घर आता है ? उसके कौन मित्र है ? उसकी क्या आदतें हैं ? वह छोटे-बड़ों का अंतर समझता है या नहीं ? स्त्री के प्रति उसकी नज़रें ठीक दिशा में कार्य कर रही है या नहीं ? जिनको बेटियाँ है वे बेटियों को बांध कर घर में बैठा दे यह वर्तमान परिस्थिति में संभव नहीं है।
मुगलों के समय था असुरक्षा का भाव
भारतीय इतिहास में जब मुगलों ने इस देश पर आक्रमण किया था तब हमारी बहु-बेटियां सुरक्षित नहीं थी। उन्हें सुरक्षित करने के लिए रजस्वला होने से पूर्व उनका विवाह संपन्न करा दिया जाता था। इस देश में बाल विवाह की कुरीति ने इस कारण जन्म लिया। यह देश आक्रांताओं से असुरक्षित रहा और उन स्थितियों का सामना करने के बाद देश की परिस्थितियों को बदला है। आज देश में सर्वधर्म समभाव भी है ! स्त्री शिक्षा भी हैं और स्त्री को समान अधिकारों की बात भी की जा रही है। ऐसे में स्त्री की प्रति नज़रिए को बदलना बहुत आवश्यक हैं। हम ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ दे सके तो ही हमारी शिक्षा चेतना शुन्य होने से बचेगी ! हमें नारी के सम्मान को प्रथम पायदान पर रखना होगा।
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