सोमवार, 22 जुलाई 2019

कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे

कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  

जनतंत्र में पक्ष एवं विपक्ष की भूमिका बराबर की न सही किन्तु समय पर मुद्दों की बहस तो होनी ही चाहिए। भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी पार्टी का अहंकार रखने वाली कांग्रेस आज जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों से अनभिज्ञ हैं। आज सरकार ने बेरोजगारी दूर करने के प्रयासों के लिए कई योजनाये शुरू की पर जमीनी हक़ीक़त कुछ ओर होती हैं। सांसद, विधायक एवं अन्य जान प्रतिनिधि कभी भी बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता से रूबरू नहीं होतें। सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में नौकरिया कम करने के प्रयास जारी हैं। जनता के बीच सरकारी नौकरी की चाह सदैव जोर पकड़ती रहती है। काम कम, पैसे ज्यादा, जीवन सुरक्षित यह तीन मंत्रो पर आधारित सरकारी नौकरी आसान नहीं परन्तु निजी क्षेत्र भी सदैव अपने व्यवसाय को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कर्मचारियों के मुद्दे पर जनहित एवं समाज विकास की बात कभी नहीं सोचते। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  


असफल होते सरकारी प्रयास 

सरकार ने स्टार्ट-अप योजना, मुद्रा लोन, मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री के नाम पर युवाओं को व्यवसाय स्थापित कर स्वयं के पैरों पर खड़े होने के प्रयत्नों का दावा किया जा रहा है। सरकारी योजनाओं की रचना और उसके क्रियान्वयन में बहुत बड़ा अंतर होता है।  इन सारी योजनाओं को हकीकत में लाने के लिए बहुत बड़ी भूमिका बैंकों की होती है, परन्तु बैंक अधिकारी इन योजनाओं को अपने यहाँ स्थित खाताधारकों को जो व्यापार-व्यवसाय में पूर्व से संलग्न है, के माध्यम से आंकड़ों को पूरा करते हैं। 

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" सरकार मनरेगा की स्किम को भी बंद कर सकती है " यह कहकर आने वाले समय का संकेत दिया हैं।  बेरोजगारी सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं है इस परिस्थिति में रहकर युवा अपने मूल कार्य से भटक कर गलत मार्ग का चयन कर लेते है।  अंगेजों से लड़कर आज़ादी प्राप्त करके भी हमने हासिल क्या कर लिया।  देश का बंटवारा, आरक्षण का ज़हर, मेकाले की शिक्षा पद्धिति समाज तो उसी दिशा में चल रहा हैं, जिस ओर अंग्रेज ले ले जाना चाह रहे थे। पक्ष और विपक्ष संसद में बैठकर नूरा-कुश्ती की लड़ाई लड़ता रहता है। जन सामान्य की अड़चन बढ़ रही है। बदलाव किसी बाजार से नहीं ख़रीदा जा सकता है, कि हम विदेशों से आयत कर लेंगे। देश में बदलाव के निर्णय सरकारी प्रयासों और साहस पर निर्भर नहीं हों सकते हैं।  अब समय जन भागीदारी का भी हैं, मगर बेरोजगारी, नौकरियों की व्यवस्था, व्यवसाय का निर्धारण यह सब मात्र सरकारी प्रयासों से निर्मित योजनाओं और उनके उचित क्रियान्वयन पर निर्भर करता हैं। वातानुकूलित कमरों में बैठकर बनाई जाने वाली योजनायें जमीनी स्तर पर कितनी कामयाब होगी यह चिंतन का विषय  हैं। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
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अपराधों में कमी आएगी !

जब युवाओं को समय पर उचित रोजगार, बेहतर शिक्षा व्यवस्था एवं विश्व स्तरीय जीवन-यापन की सुविधा अर्जित नहीं नहीं होती है तो महत्वाकांक्षा के इस युग में जब हम मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से विश्व को जोड़ने की बात कर रहे हैं और वो जुड़ भी रहा हैं तो ऐसे में हम उनका जीवन स्तर ऊँचा करना ही होगा। आज जमाना एक चलती हुई बस की सवारियों की तरह हैं जिसे सीट वो खड़ी हुई सवारी को सीधे खड़े रहने की सलाह दे रहा हैं।  एक-दूसरे की तकलीफों को समझने का समय नहीं रहा। चुनावी वारों की फेहरिस्त लम्बी होती चुनाव में खड़ा उम्मीदवार भी नहीं पड़ता और वर्तमान समय में हारा हुआ कमज़ोर विपक्ष जिसके मजबूत होने की कोई सम्भावना नहीं है। सबके ऊपर भ्रष्टाचार के बहुत से मामले है, वे सरकार के सामने चुनौती बनकर कड़ी समस्याओं के मामले में क्या बहस करेंगे। हरे हुए सेनापति के साथ कोई सिपाही नहीं होते। सरकारी प्रयत्न जारी हैं। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
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हमें क्या करना हैं ?

हमें अब सरकार और विपक्ष की अपेक्षा अपने स्वयं के बल पर ही मार्ग खोजना चाहिए। कोई हमें रास्ता दिखाये उसके बजाये हम स्वयं अपनी रह चुने। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का प्रयत्न करें पर उस पर निर्भर भी न रहे। भारत संभावनाओं का देश है, यहाँ एक रास्ता बंद होता है तो चार नए मार्ग मिल जाते हैं। युवाओं को अपने माता-पिता के संस्कारों की चिंता कर रोजगार के लिए उचित दिशा का चयन करना चाहिए। आज का युवा ही असली भारत हैं.यही हमारी संपत्ति है और यही हमारा आने वाला कल हैं। 

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