पैकेज पध्दति हमारे संस्कार नहीं ! |
आज का देखों दोस्तों कल किसने देखा है ? सरकारी नौकरियों के लिए अब समय निकल चूका है, प्राइवेट नौकरियां एवं स्वयं का व्यवसाय शासन की योजनाओं में शामिल है। मासिक वेतन कितना है ? यह प्रश्न बेमानी सा लगने लगा है। सब एक-दूसरे से पूछतें है, आपका पैकेज कितना है ? पैकेज संस्कृति ने हर व्यक्ति को ठेका पद्धति में लेकर खड़ा कर दिया है। व्यक्ति नौकरियों में अनुशासित होकर काम नहीं कर पाए और काम कराने वाले पर भी काम का दबाव हो तो कार्य पैकेज में अच्छा लगने लगता है।
विदेशों से नौकरियों पर जाने वाले लोगों के बारे में चर्चा सुनते थे, जब डॉलर को रूपए में परिवर्तित कर मेरे बच्चे का अमेरिका में सत्तर लाख रूपए का पैकेज है, कोई कहता है - पचास लाख का पैकेज है तो भारत में नौकरी करने वाले जो मासिक वेतन पर कार्य करतें थे अपने आप को पीछे की पंक्ति का मानने लगे। सरकारी नौकरियां कम होने लगी प्राइवेट नौकरियों में काम के बदले दाम की संस्कृति को बढ़ावा मिला और यहाँ भी पैकेज संस्कृति आ गई और कब संस्करों में घुल गई पता ही नहीं लगा।
सभी व्यवस्थाओं पर लागू
धीरे-धीरे पैकेज सिस्टम सभी व्यवस्थाओं पर लागू होने लगा शादी में हलवाई, टेंट, लाइट, धर्मशाला हो या ब्यूटी पार्लर आदि सभी कार्य पैकेज सिस्टम में लागू हो गए है। समय का अभाव, भाव-ताव की झंझट और सुविधाओं एवं कम कष्ट में अधिक शौक पूरे करने की जो आदत आज की मानवीय स्थिति में व्यक्ति को पड़ गई है, उसके कारण मनुष्य पैकेज में कार्य देकर निश्चिंता का भाव प्रकट करता है। विगत दिनों एक व्यापारिक मित्र से पूछने पर उसने बताया कि हमारे यहाँ चार्टेड अकाउंटेंट, फॅमिली डॉक्टर का परामर्श एवं कई पारवारिक व्यवस्थाएं पैकेज पर होती है। जिसके कारन काम रुकता नहीं हैं। वार्षिक पैकेज होने से साल में एक बार भुगतान कर संकट से मुक्त हो जाते है।
पूजा-पाठ एवं मंदिरों में पूजा पैकेज
इन दिनों पूजा पाठ और मंदिरों में भी पैकेज के कारन कुछ लेकर नहीं जाना पड़ता है। पंडित जी फूल-माला, कुंकु, नैवैद्य आदि लेकर सभी व्यवस्थाएं स्वयं जुटा देते है, जिससे भक्तों को अभिषेख, पूजा, यज्ञ, जनेऊ, विवाह, कर्मकांड सभी के लिए मात्र पैकेज का मूल्य पूछकर भुगतान करना होता है। सेवा के बदले सेवा का यह तरीका मनुष्य को व्यावहारिक बनाने की अपेक्षा क्रियात्मक बना रहा है।
यह तो हद हो गई
इन दिनों पकडे पाँच नक्सलवादी संगठन के लोगों ने खुलासे में बताया की हमारे संगठन में आतंक के लिए कार्य नियोजन के लिए पैकेज तय किये जाते हैं। प्रत्येक संगठन अपने नुमाइंदे को निश्चित धनराशि उपलब्ध कराकर निश्चित कार्य सौंपता हैं। पहले भी अपराध जगत में "सुपारी" शब्द का उपयोग किसी की हत्या के पैकेज के रूप में किया जाता था और उस जगत के लोग उसे गर्व का विषय मानते थे। पैकेज तय करते समय उत्तरदायित्व की गंभीरता एवं मन में कार्य करने की हटधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण होती है। जिवंत कार्यक्षमताओं वाले जीवट व्यक्तित्व ही पैकेज की महत्ता को प्राप्त करते हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में पैकेज की सफलता
निजी चिकित्सालयों ने पैकेज को अभिनव प्रयोग के रूप में लिया और सफल हो गए। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्टार पर चलने वाले चिकित्सालय समूहों ने ह्रदय, किडनी, कैंसर इत्यादि गंभीर बिमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए पैकेज का निर्माण किया। चिकित्सालय में पाँच सितारा संस्कृति में मेडिक्लेम यानि चिकित्सा बीमा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पेशेंट को भर्ती कराने के पश्च्यात सम्पूर्ण देखभाल चिकित्सालय द्वारा की जाती हैं। आर्थिक रूप से सक्षम लोगो के लिए यह सब आसान हो गया हैं।
भविष्य पर प्रभाव
पैकेज संस्कृति का भविष्य पर प्रभाव कैसे होगा वर्तमान में यह कह पाना संभव नहीं परन्तु इतना तो तय है कि practical life में हम भावनाओ का हनन करते जा रहे हैं। मानव ATM की तरह मशीनी जीवन जी रहा हैं। give n take की संस्कृति की जुड़वाँ इस पैकेज संस्कृति ने कमाई और सुविधाओं का जरिया तो खोज लिया परन्तु एक-दूसरे के सुख और दुःख में खड़े होकर सेवा भाव से काम करने की जो हमारी संस्कृति थी उसे धूमिल कर दिया है। वास्तु विनिमय से प्रारम्भ होने वाली भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य पैकेज पद्धति को स्वीकार तो है परन्तु उसकी सफलता संदेहास्पद ही लगती है। हमें पुनः अपने संस्कारों पर आना पड़ेगा, हम मिलकर काम करने की अपनी पध्दति से ही सुखी रह पाएंगे। यही हमारी जीवन पद्धति है और यही हमारे संस्कार हैं।
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