الاثنين، 3 سبتمبر 2018

समरस समाज से ही देश का विकास संभव !

st/sc act, sapaks
SC/ST कानून 

सरकार SC/ST कानून का अध्यादेश लाकर अपने सबसे विश्वसनीय मतदाता के सामने कसौटी पर खड़ी है। देश में राष्ट्रवादी विचारधारा को सदैव सवर्ण समाज ने बढ़ावा दिया है। आज़ादी के पश्च्यात कांग्रेस ने अपने बुद्धि चातुर्य के बल पर देश में बंटवारे की राजनीती की, जिसे बाद में वोट बैंक पॉलिटिक्स भी कहा जाने लगा । 
           
                कांग्रेस की इस वोट बैंक पालिसी में मुस्लिमों और ईसाईयों को अल्पसंख्यक समाज का दर्जा देकर विशेष रियायतें देकर अपने साथ किया, वहीँ दलितों और वनवासियों को आरक्षण देकर अपने साथ किया। 

जनसंघ के ज़माने से संघ और राष्ट्रवादी विचारों को बनिया-ब्राह्मणों की पार्टी कहकर हांसिये पर रखा गया। अपने 60 वर्षों के शासन में कांग्रेस ने वोट बैंक का भरपूर उपयोग किया, परन्तु अल्पसंख्यकों की जीवन पध्दति में विशेष बदलाव आया हो ऐसा नज़र नहीं आया, और जब उन्हें समझ आया की हम चार पीढ़ियों से शहरों में पंचर की दुकाने ही चला रहे है। उन्होंने समाजवादी और अन्य दलों की ओर रुख कर लिया। यही अवसर था, जब मुस्लिम वोट छिटकने से कांग्रेस कमजोर हो गई।  भारत में 60 वर्षों से विपक्ष जो बिखरा था ! हिन्दू मतदाता जो बिखरा था ! वह एक हो गए। 
                                          2014 के चुनावों में हिन्दुओं के साथ कई स्थान पर मुस्लिम वोटर ने भी बदलाव के लिए वोट किया और भारतीय जनता पार्टी समर्थित N.D.A ने 313 सीटें जीतकर सरकार बनाई। ऐसे में अन्य दलों में हड़कंप मच गया, जो हिन्दू वोट वर्षों से बांटकर हिन्दू बहुल गणराज्य में कष्ट झेलकर दूसरे दर्जे पर था, अचानक मुख्य धारा में आ गया !


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ज़हर फैलाया है जनता को बांटकर :-60 सालों में देश में ऊँच-नीच, जात-पात मिटने का कोई प्रयास नहीं हुआ, सरकारों ने जहर भरकर हिन्दुओं को एक-दूसरे के सामने खड़ा किया ! हिन्दू, हिन्दू का दुश्मन बना रहा और मुस्लिम तो प्रश्न ही नहीं, वो तो सरकार का चहेता था। "जनसंघ/भा.ज.पा सांप्रदायिक पार्टी है" कहकर देश को बंटा रहने दिया। आरक्षण जो आम्बेडकर जी ने संविधान निर्माण के समय 10 वर्षों के लिए लागू किया था, को वर्षों तक चलता रहा। धीरे-धीरे आरक्षण में बढ़ोत्तरी होती गई और सवर्ण हांसिये पर चले गए। गरीबी हटाओं  का नारा देने वाली पार्टी ने कभी अमीर नहीं बनने दिया गरीबों को। उनकी गरीबी आज तक कम नहीं हो पाई। 


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अध्यादेश से हिंदुत्व की एकता पर संकट :- हिन्दू समाज में आपसी लड़ाई एक बार पुनः इस अध्यादेश के माध्यम से सड़कों पर आ गई है। उन्नति के शिखर पर चढ़ते हुए राष्ट्र जब अपने विकास की राह पकड़ता है, तो राजनितिक परिस्थितियां उस पर संकट के बदल मंडरा देती है। सवर्णो को अपने अस्तित्व की लड़ाई नज़र आ रही है परन्तु उत्तर प्रदेश के माध्यम से इस देश में 283 सीटें जीतकर जो अच्छे दिन लाने वाली सरकार आई है, उस पर एक विकत समस्या का निर्माण हो गया है। 

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समरसता का काम अधूरा न रह जाए :-साधु-संतों, ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं ने इस संपूर्ण हिन्दू समाज को एक साथ रहकर एक समरस समाज के निर्माण का जो मंत्र दिया था वह अब अधूरा ही रह जायेगा ऐसा भय नज़र आने लगा है। विपक्षी जानते है की समरस हिन्दू समाज ही एक उन्नत एवं विकासशील राष्ट्र के निर्माण का कारक बनेंगे। ऐसे में इस समरस समाज को तोड़कर ही अपने मंसूबो को पूरा किया जा सकेगा !

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राहों में कितनी अड़चन आ जाये !
हमको कोई डिगा न पाए !!
हम हिम्मत से काम करेंगे !
अपने बल पर अड़े रहेंगे !!
समरस समाज हो तो ही उद्धार !
समरस समाज देश का आधार !!
मिलजुल कर सब काम करेंगे,
ऊंच-नीच को दूर करेंगे !
देश का नव निर्माण करेंगे !!
राजनीती सत्ता की चाहत !
मानव को नहीं मिलती राहत !!
बंटवारे का उनका काम !
समरसता ही एक समाधान !!

هناك تعليقان (2):

  1. समरसता ही विकास का एक मात्र रास्ता है

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  2. समरसता की बात करके सवर्ण समाज को भ्रमित किया जाता है|

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