الأربعاء، 29 أغسطس 2018

बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा मिला !

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बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा मिला !
इन दिनों बच्चों को गोद लेने का चलन समाज में गति पकड़ रहा है। प्रगतिशील भारत अब व्यवहारशील एवं भावनाशील क्षेत्र में एकलजीवन जी रहे माता-पिता को अपने विभिन्न विभागों एवं एन.जी.ओ के माध्यम में सहयोग प्रदान कर रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग एवं जिलाधीश एवं जिला पुलिस अधीक्षक की भूमिकाएं सक्रिय हो सकती है।

निःसंतान दम्पत्तियों के लिए अवसर :- समाज में एक और एन.एस.व्ही, टेस्ट ट्यूब बेबी एवं उन्नत तकनीक के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान की ओर अग्रसर हो रही है, वहीं समाज में गोद लेने एवं सुविधाजनक गोपनीय एवं व्यवस्थित Adoption के क्षेत्र में भी दम्पत्तियों की रूचि बढ़ रही है। नवजात शिशुओं का त्याग, अवांछित गर्भ, एवं अवैध संतान समाज में विकत परिस्थितियों में जीवन यापन करें, उसकी अपेक्षा उसे समाज में माता-पिता के साथ न्यायपूर्ण एवं सम्मानित जीवन जीने को मिलता है। जो समाज के लिए एक उन्नत एवं प्रगतिशील कदम है।
sushmita sen with her daughters

yash johar son of karan johar, karan johar with his son yash johar
लक्ष्य मिलता है जीवन को :- बॉलीवुड अभिनेत्री सुष्मिता सेन के लड़की को गोद लेने से एक नई परम्परा प्रारम्भ की, जिसे आगे बढ़ाकर फिल्म निर्माता/निर्देशक करण जौहर एवं अन्य व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बन रही है। अब आम नागरिक भी इस दिशा की ओर अपनी सोच आगे बढ़ा रहे है। समृद्ध,विकसित एवं उच्च शिक्षित समाज में सरकारी नौकरियां हो या उच्च स्तरीय व्यवसाय व्यक्ति धन की प्रचुरता होने के पश्चात भी जीवन में अभाव एवं तनावग्रस्त जीवन यापन करता है। एकाकीपन से कभी-कभी लक्ष्य विहीन जीवन अवसाद की स्थिति भी ले आता है। समय पर उचित निर्णय लेने से मनुष्य जीवन तनाव मुक्त होकर सबके साथ सुखी जीवन यापन करने की सोच भी नहीं पाता ! ऐसे में उसे अपने जीवन के बारे में यह सोचना चाहिए। 
cute baby child with his parents
Social change about child adoption
समय एवं समाज में बदलाव :- एक समय था, जब निःसंतान नारियों को बाँझ की उपमा देकर उनका अपमान किया जाता था और उनके निःसंतान होने को उनका व्यक्तिगत दोष मानकर घर-परिवार में प्रताड़ित किया जाता था। इस रोग का दोष इस पुरुष प्रधान समाज में सदैव नारियों को दिया, जोकि एकदम दिशा के विपरीत है।
girl child
बेटी बचाओ! बेटी पढ़ाओ !!
बेटियों को गोद लेना भी उत्साह है :- समाज में सबसे बड़ा एवं सकारात्मक बदलाव यह है की खानदान का नाम, परिवार की पीढ़ियों का भविष्य यह बातों को छोड़कर अब बेटियों को गोद लेने का भी उत्साह लोगो में बढ़ा है। समय पर इस चलन को समाज सहर्ष स्वीकार करे एवं हाथों-हाथ लें। 
childhood with parants

हर घर में  गूंजे किलकारी,
नहीं रहे अब कोई अनाथ !
हर बच्चे को पालक मिले,
तो बाद जाये सबका सम्मान !
माँ को मिले बच्चे का प्यार,
मिले बच्चों को ममता का उपहार !
पिता की छाया मिले और,
मिले घर का संसार !



الأربعاء، 22 أغسطس 2018

संस्कृत स्वैच्छिक नहीं अनिवार्य भाषा बने !

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भारतीय संस्कृति के उत्थान में भाषा का विशेष योगदान है। हमारी देवभाषा "संस्कृत" जिसके माध्यम से यहाँ पुरातनयुगीन संस्कृति से ऋषि-मुनियों ने विश्व गुरु के रूप में सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने का कार्य किया। चार वेद हो या सुश्रुत एवं चरक संहिता के माध्यम से आयुर्वेद जैसे वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक औषधि के आधार पर उत्तम स्वास्थ शिक्षा का मार्गदर्शन प्रदान किया। 
                                                                                     नासा ने गत वर्ष अपने अनुसन्धान के आधार पर "संस्कृत भाषा" को विश्व की सरलतम एवं संक्षिप्त वाक्य में प्रस्तुत करने वाली भाषा बताया। वर्त्तमान में विश्व के कई देशों के विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों ने संस्कृत को आगामी युग में कम्प्यूटर के लिए सबसे सरलतम भाषा बताया जाने के बाद अपने अनिवार्य विषयों में सम्मिलित किया है। मेरे प्रदेश मध्यप्रदेश का दुर्भाग्य है की यहाँ सत्ता की चाबी अपने पास रखने के लिए प्रचिलित कोर्सेज को चलने के लिए संस्कृत की तुलना ब्यूटिशियन के कोर्स से की गई। वर्तमान में मध्यप्रदेश में संस्कृत ऐच्छिक विषय के रूप में चलाया जा रहा है। संस्कृत की उपयोगिता बड़े इसके लिए सत्ताधीशों के प्रयास मात्र अपनी मातृ संस्था को खुश करने के लिए है। हमारे देश में संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनायें जाने की चर्चा पर सबसे घनघोर विरोध तमिलनाडु के  मुख्यमंत्री करूणानिधि ने किया। "जब एक पत्रकार ने उनसे कहा की आपका तो नाम ही संस्कृत के दो शब्दों करुणा + निधि से मिलकर बना है, तो उन्होंने कहा की यह दोनों शब्द तमिल के ही है, संस्कृत ने इन्हे चुराया है। बहुरंगी संस्कृतियों वाले इस देश में प्रत्येक राज्य अपनी भाषा और बोली के प्रति निष्ठावान है, परन्तु राष्ट्र की पहचान बनाने वाली हिंदी और अन्य भाषाओं की प्रणेता देव भाषा संस्कृत के मामले में सबका मन बहुत ही छोटा है। हमें संस्कृत भाषा के विकास की अन्य देशों के संस्कृत पर कार्य को देखकर सिख लेनी चाहियें।लन्दन के st. james school में संस्कृत अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। 




संस्कृत की कुछ रोचक बातें :-
  • संस्कृत में १०२ अरब ७८ करोड़ ५० लाख शब्द है।जो दुनिया की किसी भी भाषा में सबसे अधिक है। 
  • १९८७ में अमेरिका की फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार संस्कृत computer programing के लिए सबसे अच्छी भाषा है, क्योंकि इसकी व्याकरण programing से मिलती-जुलती है। 
  • अमेरिकन हिन्दू यूनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत भाषा में बात करने वाले व्यक्ति बीपी, मधुमेह,कोलेस्ट्रॉल आदि बिमारियों से मुक्त हो जाता है, क्योंकि संस्कृत में बातें करने से मानव शरीर का तांत्रिक तंत्र सक्रीय रहता है जिससे की मनुष्य का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है। 
  • दुनिया के १७ देशों में एक या अधिक विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नयी प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, पर संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में नहीं है। 
  • संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है। 
  • किसी और भाषा के मुकाबले सबसे अधिक शब्द होने के बावजूद संस्कृत में कम शब्द में वाक्य पूर्ण हो जाता है। 
  • नासा के पास संस्कृत में ताड़पत्रों पर लिखी ६० हज़ार पाण्डुलिपियाँ है जिन पर शोध किया जा रहा है। 


महर्षि पाणिनि को नमन 

महर्षि पाणिनि को नमन 
संस्कृत में अष्टाध्यायी ग्रन्थ का निर्माण कर संस्कृत के सूत्र देने वाले संस्कृत के आदिगुरु महर्षि पाणिनि को नमन ! ४० पन्नो में उन्होंने विश्व के समस्त देशों को भाषा का मार्ग दिखने में मदद प्रदान की। दक्षिपुत्र पाणिनि ने जिन ग्रंथों को पढ़ा उससे कई संकेतों के माध्यम से संस्कृत का विकास किया। पाणिनि ने इतिहास, भूगोल,अर्थशास्त्र, गणित एवं विज्ञान सभी विषयों का ज्ञान विकसित किया। 

हम अपेक्षा करेंगे संस्कृत विश्व में पढ़ी  जाये एवं राष्ट्र भाषा के रूप में उसे स्वीकार करें। 

الاثنين، 20 أغسطس 2018

हिम्मत ही अवसाद से बचाव का मार्ग है !

depression
मानव जीवन जिंदगी के हर कदम पर चुनौतियों से झूंझता नज़र आता है। रिश्तों की अहमियत हो या विश्वास पर उठता प्रश्न चिह्न ? दैनदिन जीवन में मनुष्य को हर कदम खुद को साबित करने के लिए उठाना पड़ता है। बचपन ही जीवन का ऐसा कार्यकाल होता है जब स्वयं-सिद्धता के विषय में हमें खुद को कम साबित करना पड़ता है, परन्तु प्रतिस्पर्धात्मक इस युग में हमें कभी-कभी अपने परिवार में तो कभी समाज में एक-दूसरे से झूझना पड़ता है। यहीं से हमारे लिए चुनौतियों का दौर प्रारम्भ होता है।
                                                                                           घर परिवार से बहार निकलकर भी देखें तो चुनौतियां और जीवन के उतर-चढ़ाव कहीं भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में जब वर्तमान का कालखंड अर्थयुग भी कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस अर्थयुग में कोई क्षण ऐसा आता है जबकि आप अपने कार्य में असफल होने लगते है,तब कई बातें आप स्वयं से पूछने लगते है जैसे :-

  • मैं क्यों असफल हो रहा हूँ ?
  • मेरी कार्यक्षमता में क्या कमी है ?
  • दूसरों की तुलना में मेरी योग्यता समाज और बाजार क्यों कम आंक रहा है ?
  • मैं अपने कार्य में क्या सुधार करूँ जिससे पुनः समय की दौड़ में शामिल हो जाऊँ ?
इन् समस्त प्रश्नो को लेकर जब आप अपने मित्रों के पास जाते है तो वे उपाय के स्थान पर समस्या के विस्तार पर चिंतन में लग जाते है। यही चिंतन जब मनुष्य एकांत में बैठकर सोचता है तो वह अवसाद अर्थात depression की स्थिति में पहुँच जाता है। हम मित्रता के साथ न्याय करने की सोचें तो असफल व्यक्तियों के साथ सफलता का मार्ग नहीं खोजा जा सकता है, यह हर व्यक्ति सोचता है और सफल व्यक्ति स्वयं पर नाज़ करके इतराता फिरता है। उसे यह दिखाई नहीं देता की जीवन के जिस उतार चढ़ाव को आज एक मित्र भुगत रहा है, कल यह दिन उसके साथ में आ सकता है और जब यह दिन उसके साथ आएंगे तो मित्रों के आभाव में क्या वह उस परेशानी के घेरे से बहार आ पायेगा? परन्तु सफलता का नशा असफल मित्र को सहायता तो दूर उसे मजाक बनाकर चर्चा में लाने की स्थिति भी निर्मित करता है। जीवन के उतार चढ़ाव के क्षण किस उम्र में आते है यह भी महत्वपूर्ण विषय है और इससे कैसे निकला जाय यह उससे बड़ा प्रश्न है क्योंकि हालातों का मारा व्यक्ति यदि अकेलेपन को अपना मित्र बना लेगा तो अवसाद की स्थिति निश्चित है, परन्तु समाज में रहकर यदि आपमें परिस्थितियों से जुझने की प्रवृति अपने अंदर निर्मित कर ली  तो शायद आप समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति होकर भी कभी मुख्य धारा का पात्र बन सकते हैं। आप अपने मन में एक ही बात सोचे :-
"मैं हार का नहीं जीत का साथ धरूँ !
मैं कभी नहीं हार को स्वीकार करूँ !!
हार और जीत दो सीढ़ियां है, जीवन की !
क्यों न मैं दोनों को हँसते-हँसते पार करूँ !!"  
मित्र जीवन की पूंजी है मगर हिम्मत जीवन की कीमत ! यदि हम पूँजी हासिल करेंगे तो हिम्मत यानी कीमत भी मिल जाएगी और यदि हम मित्र नहीं जुटा पाये तो हर क्षण प्रति क्षण एकांत हमें घेरने लगेगा समाज से जुड़ना और नहीं जुड़ना बहुत सामान्य प्रक्रिया है परन्तु दोनों के परिणाम सामान्य नहीं है। समाज में सफल को स्वीकार्यता तो मिलती है परन्तु उसको विरोधो का भी सामना करना पड़ता है और असफल व्यक्ति तो स्वयं ही स्वयं का विरोधी हो जाता है और जब हम स्वयं के विरोधी होंगे तो हमारी हिम्मत एवं समाज में सबके साथ मिलकर कार्य करने की स्वीकार्यता ही हमारी पूंजी होगी।


हम एकाकी होकर जीवन जीयें भी क्यों ?


हमारे जीवन की चिंता क्या हमारा एकाकीपन दूर कर देगा कदापि नहीं ! ऐसे में हम यह सोचे की यदि समाज हमारी असफलताओं पर टिप्पणी कर रहा है तो क्या समाज में सफल व्यक्ति को शत प्रतिशत लोग स्वीकार कर रहे हैं। जवाब आपको अपने आप मिल जायेगा आपकी सफलता के कई विरोधी होंगे !


मन सदा एक ही चिंतन करें !

"जीत हो या हो हार, सभी मुझे स्वीकार है !
गम हो या हो खुशियां, हर कदम पर प्यार है!!
कर दो ईश्वर इतना काम, सभी करे मुझको स्वीकार !
कभी ना हो मन में अवसाद, हर क्षण हो हिम्मत का साथ !!
हिम्मत मेरी साथी बनकर, जब जीवन में आएगी !
खुशियां और स्वाभिमान मन में भरकर जाएगी !!

الجمعة، 17 أغسطس 2018

सरकारें निजी क्षेत्रों के विकास में भी सहायक बने !

भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और इस देश में किसान को अन्नदाता कहा जाता है। देश की वित्त व्यवस्थाओं  का संयोजन करते समय सरकारें सभी वर्गों का ध्यान रखने का प्रयास करती है। विगत कुछ वर्षों से मेरे राज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कृषकों  एवं कर्मचारियों के हितों  की नीतियों का निर्माण कर शेष सभी वर्गों को नजरअंदाज कर दिया है। 
                                          सरकार की इन् नीतियों के  कारण सामान्य मध्यम वर्ग, व्यापारी, छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, शिक्षा एवं स्वास्थ्य में जो निजी  संस्थायें कार्य कर रही है, उनकी भी भरपूर उपेक्षा हुई है। देश एवं प्रदेश के विकास में सभी का सहयोग होता है, सबकी भूमिकाएं होती है, सबका परिश्रम होता है। तभी देश खड़ा होता है, परन्तु सरकार अपनी नीतियों का निर्धारण करते समय सबके विकास को छोड़कर वोट बैंक की पॉलिसी से कार्य करती है।  ऐसे में कई वर्ग जो सड़कों पर आने पर मतदान के दिन या तो सरकार के विपक्ष में मतदान करते है या अपने घरों में चुपचाप बैठकर मतदान जैसे पुनीत कार्य की भी उपेक्षा करते है। 

कृषि अर्थव्यवस्था के पहलु देखें तो सरकार सहकारी बैंकों से शुन्य प्रतिशत ब्याज़ दरों पर ऋण, प्राकृतिक आपदा पर मुवाअजा और अब सरकारी योजना की पराकाष्ठा तब हो गई, जब मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर भवान्तर योजना से सरकार किसानों को पैसा बाँटकर अपने पक्ष में करने में लगी है। देश-प्रदेश में जब भी कभी वित्त व्यवस्था की चर्चा होती है, तो किसानों की भूमिका पर केंद्र बिंदु होता है। परन्तु क्या किसी क्षेत्र का विकास उस क्षेत्र की बेहतरीन शिक्षा एवं उत्तम स्वास्थ्य के बगैर सम्भव है, कदापि नहीं ! 
                                                                                                             सरकारें समझें किसी क्षेत्र की उत्तम और बेहतर व्यवस्थाओं को सार्वजनिक रूप से निजीकरण के माध्यम से चलना उत्तम होता है। आज शहरों में या गाँव में निवासरत लोगों की जीवन पध्दति में अधिक पैसा खर्च करके उत्तम व्यवस्थाओं की ओर जाने का माद्दा बड़ा है। सरकारी व्यवस्थाओं पर उस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों अधिकारीयों को भी भरोसा नहीं होता !
सरकारें जानती है सब बातें ! परन्तु निजीकरण को बढ़ावा देने से डरती हैं। सुविधाओं को मुहैया करने से बचती है।
     जनसुविधाओं की बेहतरी के लिए ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को भी निजीकरण से जोड़ने का जो लक्ष्य है, वही उत्तम प्रयास है। इन्हे तुरंत लागू किया जाना चाहिए। 


सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का माध्यम सदैव निजी शिक्षण संस्थाओं एवं नर्सिंग होम को भी बनाया जाता हैं। सरकार आँखें खोलकर नहीं बल्कि दिल खोलकर बाँट रही है। तभी मंदसौर क्षेत्र में किसान आंदोलन के दौरान जो दुःख सामने आया वो विपक्षी राजनीति के लिए उपयोगी बिंदु एवं मुद्दे थे,  परन्तु क्या वास्तव में प्रदेश का किसान बसों को जलने वाला ही है? बिजली की चोरी करने वाला ही है? डोडाचूरा की तस्करी करने वाला ही है? उत्तर मिलेगा 'नहीं'! और दोष दिया जायेगा सरकारी नीतियों को! मोदी जी ने "सबका साथ-सबका विकास" का नारा तो दिया परन्तु प्रदेश सरकार अपनी योजनाएँ उसी के  अनुरूप बनायें तभी क्रांति होगी और विकास पनपेगा।                                                                                                  

الخميس، 16 أغسطس 2018

अटल स्मृति



atal bihari vajpayee
अटल स्मृति 



आँखों में आंसू और दिल में अँधियारा है !

भारत के भाग्य को बस एक अटल सहारा है !!


Atal Bihari vajpayee
अटल स्मृति 


दुश्मन भी दोस्त बने, विरोधी करे प्यार !
मित्रों और विरोधियों से रहा समान व्यव्हार !!

atal bihari vajpayee, sonia gandhi, lalkrishna advani, manmohan singh
अटल स्मृति 

मुस्कुराता चेहरा दिल में खुलापन रहा !
अटल जी की याद में आज सूनापन रहा !!

atal bihari vajpayee laugh
अटल स्मृति 


मन और मस्तिष्क में सारे शब्द शून्य हैं !
देश का एक बड़ा कवि हृदय सदा के लिए मौन हैं !!

atal bihari vajpayee kavita (poem)
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जग को अपनापन और देश को विकास दिया !
भारत में स्वर्णिम चतुर्भुज से आकर दिया !!

swarnim chaturbhuj, Golden Quadrilateral
अटल स्मृति 

चाहा था नदियां भी जुड़कर बह जाएँगी !
देश की चंहु ओर जल से किस्मत जुड़ जाएँगी !!

ganga jamuna
अटल स्मृति 

आएगा क्षण प्रति-क्षण चेहरा वह याद अब !
अटल जी तो मौन है पर यादों का भण्डार सब !!

atal bihari vajpayee
अटल स्मृति 

الأربعاء، 15 أغسطس 2018

मन में अभी अंधेरे हैं !




मैंने अपना सारा बचपन उनके साथ गुजरा है !
दादाजी होकर भी मुझको दोस्त जैसा सहारा है !!





दिल में बसे हुए हो अब भी लगता नहीं अब चलें गए !
घर में साया बनकर अब भी मन में यूँ ही बसे रहे !!





चलें गए हो हमें छोड़कर सुना-सुना लगता हैं !
आज जन्मदिन है आपका मन को अनमना लगता हैं !!





 


क्या अब वापिस आ पाओगे ?
मेरा बचपन लौटा पाओगे ??
सारे प्रश्न अधूरे हैं !





इंतज़ार करता हूँ अब भी मन में अभी अंधेरे हैं !
काम आपके  पूरे कर लूँ, तब भी स्वप्न अधूरे हैं !! 

الثلاثاء، 14 أغسطس 2018

काश नदियों को जोड़ ही जाते "अटल जी "

स्वतन्त्र भारत में गैर कॉग्रेसी सरकारों का वर्चस्व कम ही रह पाया 
है। गठबंधन सरकारों के दौर में एन.डी.ए अर्थात नेशनल डेमोक्रेटिक 
अलायन्स 'जों की भारतीय जनता पार्टी की अगुआई में चलने वाला 
गठबंधन है' की  सरकार जो की पूर्व प्रधानमत्री श्री अटल बिहारी 
वाजपेयी  की नेतृत्व में बनी थी, एक सफल सरकार कही जा सकती 
है। अटल जी ने संसद में रहकर कई प्रधानमंत्री देखे और सरकारें दे -
-खी।  उसीका नतीजा था कि जब राष्ट्र के प्रधानमंत्री के रूप में जब 
उनको अवसर मिला उन्होंने अपने सपने जनता के सामने रखे !
संयुक्त राष्ट्र संगठन में हिंदी में भाषण हो, उत्तम विदेश नीति हों 
या स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के माध्यम से सड़कों का विस्तार कर 
उन्होंने देश को सड़कों के मामलों में विश्व स्तरीय प्रतिष्ठा दिलाने 
का पूर्ण प्रयास किया। 
https://pravinbhaikikalam.blogspot.com/2018/08/blog-post_16.html














अटल जी की योजनाओं में नदियों को जोड़ने की योजना प्रमुख थी। 
अटल जी जानतें थे " देश बड़ा है जहाँ कहीं नदियाँ सुखी है तो कहीं 
बाढ़ जैसे हालत हो जाते है " यदि देश की नदियों को जोड़ दिया जाता 
तो विकास की योजनाओं को लागू करना आसान हो जायेगा। आज 
जब वैश्विक परिस्थितियों में ग्लोबल वार्मिंग एक विकराल रूप धारण 
कर परेशानियाँ खड़ी कर रही है ऐसे में प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्याओं से 
जूझता भारत आज एक बार फिर से अटल जी को याद कर रहा है,
"काश अटल जी नदियों को जोड़ गयें होते !" 














आधा भारत आज बाढ़ के हालातों से जूझ रहा है, तो लगता है पाँच 
वर्षों तक वही सरकार फिर से बनती और नदियों के जोड़ने के स्वप्न 
की दिशा में एक कदम भी आगे बढ़ा पाते तो भारत विकास की गाथा 
के प्रथम अध्याय पर रहकर विश्व में अपना सम्मान कायम कर 
सकता। 


















आज जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में विकास की सरिता 
प्रवाहित कर रहे हैं।  ऐसे में अटल जी के इस पुनीत अभियान पर फिर 
से काम करने का विचार करना चाहियें। समृध्द एवं विकसित राष्ट्र की 
संकल्पना में भारत की नदियाँ महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सक-
-ती हैं। नदियाँ देश में तबाही का नहीं अपितु जीवनदायी जल - गंगा ,
यमुना, नर्मदा,रुपी धर्म एवं विकास का आधार है  ! जिन्हे जोड़कर हम 
सिर्फ नदियों का जल ही नहीं देश के संस्कारों को जोड़ने का प्रयास कर 
सकते हैं। 

الاثنين، 13 أغسطس 2018

यें जश्न कब तक..... ?

 गुलामी की यादें लेकर 
                    आज़ादी का जश्न आ गया !
भगत सिंह की शहादत भुलाकर 
                    भ्रष्टाचरियों का वक्त आ गया !!
तिलक का नारा भूल गया है , ये भारत
                   दिल में कुछ अरमान जगे  वो वक्त आ गया !
नेता अपनी जेबें भर कर चलते हैं 
                   मतदाता के पास जाने का वक्त आ गया !!
ईमान कहाँ सभी का जिन्दा हैं 
                   बेटी तेरे सामने सब शर्मिंदा हैं !
जग को कहाँ सुधरेंगे "हम" खुद ही सुधर जाएँ हम       
                    समझने और समझाने का यह वक्त आ गया !!
गंगा जमनी तहज़ीबें सब साथ चलें, शिक्षा खूब मिले यह संस्कार बने 
                    विश्व गुरु फिर से बनने का वक्त आ गया !

गुलामी की यादें लेकर 
                    आज़ादी का जश्न आ गया !!

समरसता सत्ता प्राप्ति का मंत्र नहीं, हिन्दू जीवन पध्दति का तंत्र बने।

आज़ादी के सत्तर वर्षों में सबसे बड़ा भाग कांग्रेस की सत्ता का रहा है। 
मुस्लिम समाज को वोट बैंक और बिखरा हुआ हिन्दू समाज कांग्रेस 
की सत्ता की चाबी बना रहा। 
                              ना मुस्लिमों का विकास हुआ ना हिन्दू संस्कृति और 
सभ्यता को बल मिला ! भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लगातार
सत्ता का केंद्र बनी कांग्रेस राम जन्म भूमि जैसे मुद्दे के उठने के पश्चात् 
आज तक सत्ता में नहीं आ पाई ! भारत में समरसता का आभाव ऊंच - नीच 
की भावना एवं आरक्षण जैसे गंभीर और चिंतनीय विषयों पर सरकारों के 
आंख मूंदने से प्रारम्भ होता हैं। 
                      संघ के सर संघचालक  श्री मोहन राव भागवत के बयान 
''आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए'' को समाज में राजनीतिज्ञों ने संकुचित 
भावनाओं के साथ फैलाया।  आरक्षण की समीक्षा से समरसता कब होगी 
यह सोचना उचित नहीं हैं। 
                
 समरसता सत्ता प्राप्ति का मंत्र नहीं, हिन्दू जीवन पध्दति का तंत्र बने।
 समरसता सत्ता प्राप्ति का मंत्र नहीं, हिन्दू जीवन पध्दति का तंत्र बने। 

   











                    राष्ट्रव्यापी मुद्दों पर जब हम सभी भारतवासी एक हो जाते
हैं तो ऐसे में हिन्दू समाज अपने धर्म संस्कार, संस्कृति की रक्षा के लिए एक
नहीं हो सकतें ! विगत वर्षों में जब राम सेतु के मुद्दे पर संघ ने सड़कों पर 
आकर आवाज बुलंद की तों जो हिन्दू समाज सड़कों पर आया वों समरस नहीं
था! यह सोचना उचित नहीं होगा। 
                      यदि राम हम सबके आराध्य हैं तो भारत माता और जीवनदायिनी
गंगा भी हम सभी के पूज्यनीय और श्रध्दा का केंद्र हैं।
                     आओ हम सभी एक समरस हिन्दू समाज को पुनर्गठित करें !
                     एक समरस हिन्दू समाज ही सबकों साथ लेकर चलने एवं भारत माता 
को विश्व गुरु के स्थान पर पुनर्स्थापित करने में सफलता प्राप्त करेगा।  

الأحد، 12 أغسطس 2018

व्यवसायिकता और व्यवहारिकता

व्यवसायिकता और व्यवहारिकता शब्दों में समानता हो सकती हैं।  
परन्तु अर्थ में एकदम भिन्नता हैं। 
धन, वैभव और अर्थ प्रधानता के इस युग में व्यवहारिकता को मूर्खता 
मानने वाले लोग बहुत हैं।
परन्तु एक समय आयेगा जब अर्थ को अनर्थ माना जायेगा 
और हम धन लेकर मित्र ढूंढेंगे और मिलेगा 
एक बड़ा शुन्य...........................
मित्रों आप क्या सोचते हैं ?....... 

السبت، 11 أغسطس 2018

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पृथ्वी हमसे प्यार करें और 
          हम उसका अपमान करें !!
नहीं बचेगा कुछ धरती पर जो 
          प्रकृति से हम खिलवाड़ करें !!
खड़ा हिमालय रक्षक बन कर 
           उसका क्यों अपमान करें !!
आई तबाही शिव तांडव से 
           जनता हाहाकार करें !!
तीर्थ बने हैं हिम शिखरों पर 
            देश का स्वाभिमान बने !!
सूरा सुंदरी के चक्कर में 
            यहां भी व्यभिचार बढ़े !!
देश का हर कंकर शंकर हैं 
            कण कण में हैं देव बसे !!
मानव जीवन पाया तुमने 
            राक्षस कैसे आन बसे !!
अब भी मिला है मौका तुमको 
            धरती का सम्मान करों !!
खड़ा हिमालय रक्षस बनकर 
            मन में स्वाभिमान भरो !!
सोने की चिड़िया है भारत उसका 
            कुछ सम्मान  करों !!
धरती नहीं मांगती कुछ भी 
             वृक्षों से उसकी गोद भरों !!

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नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...