الجمعة، 29 مارس 2019

स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !

स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !
स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !


स्त्री यानि त्याग की प्रतिमूर्ति कहने सुनने में यह पुस्तक में लिखा शब्द लगता हैं। प्रकृति में स्त्री और पुरुष में भेद करते समय बल पुरुष को, सहनशीलता स्त्री को, दी उन्होंने सोचा भी नहीं होगा की पुरुष का यह बल स्त्री की रक्षा की अपेक्षा उस पर अन्याय करने में कई लोग उपयोग करेंगे और स्त्री की सहनशीलता उसका बल होने की अपेक्षा उसे कमजोर करेगा। आज बदलते परिवेश में स्त्री पुरुषों के बीच समानता नजर तों आ रही है परन्तु उसके अधिकार को स्वीकार नहीं कर पाया है यह समाज ! मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभव से भी यह देखा की समाज में ३३ % आरक्षण के पश्चात सरपंच, विधायक एवं अन्य पदों पर स्त्रीयों की नियुक्ति या तो हुई पर प्रतिनिधि के तौर पर उनके पति अपनी राजनिति को चमकते रहते है। मैंने अपने निजी अनुभव में एक महिला चिकित्सक को अपने पति से डरते हुए देखा है पति ने कह दिया इतना बड़ा नर्सिंग होम लेकर बैठे हैं, बड़ा स्टाफ है, चार सोनोग्राफी, तीन ऑपरेशन नहीं हुए तो आर्थिक व्यवस्था संभव नहीं, दर में वह महिला चिकित्सक न चाहते हुए भी अपने पेशेंट को आर्थिक हानि पहुंचती है,कचोटता हुआ उनका मन उनके उदास चेहरे पर साफ नजर आता है। 

स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !
स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !


समाज में स्त्री उदारता के भाव उत्त्पन्न तो हुए है, पर मन अभी यह स्वीकार नहीं कर पा रहा है।  तेज़ स्वाभाव वाली स्त्रियाँ  भी समाज में हैं। कहते है, पुरुषों का एक संगठन पत्नी पीड़ित का भी हैं परन्तु यह कम नज़र आता हैं। 







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स्त्री की शत्रु स्त्री भी होती है 

घर, परिवार, समाज में नारी सम्मान का यह प्रश्न स्त्री-पुरुष के मध्य तो है परन्तु कई परिवारों में रिश्तों की दरार, वर्चस्व की लड़ाई, प्रतिस्पर्धा का भाव और तेरा-मेरा करने की प्रकृति से एक औरत ही औरत की शत्रु बन जाती है। व्यावहारिक जीवन की विषमताएँ  घर से ही प्रारम्भ होती है। उसका प्रभाव धीरे-धीरे समाज पर पड़ता जाता है।  आज बदलते परिवेश में घरेलु प्रकरणों में कमी आई है।  इसका प्रमुख कारन शिक्षा और समाज में बढ़ती जागरूकता है। बेटे-बेटी में अंतर करने वाला यह समाज कब बहु को बेटी के रूप में स्वीकार कर पाएंगे यह विचारणीय प्रश्न है।


स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !
स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !

बेटियाँ निभा रही है, बेटों की भूमिका 

समाज में बदलाव इस कदर आ गया है कि वंश बेल की चाह में सात बेटी तक इंतज़ार करने वाले युग में बदलाव आ गया है। बेटियाँ बेटों के रूप में अपने माता-पिता की देखभाल कर रही हैं। सम्पत्ति में अधिकारों का जीवन हर क्षेत्र में कर्तव्य निभाकर, बेटियां अपने आप को सिद्ध कर रही है। 

स्त्री दिवास तक सम्मान सिमित नहीं 

नारी शक्ति के सम्मान की परम्परा युगों से चली आ रही है, इसे बरक़रार रखना चाहिए। हम पुरुष प्रधान समाज में नारी का अपमान कर स्वयं को कुछ समय तो सिद्ध  लेते है परन्तु जब चिंतन करेंगे तो पाओगे की हमारे लिये पल-पल जीने वाली नारी कभी स्वयं के  सोचती। घर परिवार में बच्चे, पति, बड़े-बुजुर्ग सभी के पश्चात् भोजन करने वाली नारी जिस दिन पुरुष मानसिकता की तरह जीने लग जाएगी तभी पता चलेगा पुरुष को की हम क्या प्राप्त कर रहे है और हमें क्या करना चाहिए। 

स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !
स्त्री शक्ति की उपयोगिता आवश्यक !

स्वयं सिद्ध बनना होगा नारी को 

स्त्री स्वयं को सिद्ध कर पाने में सक्षम होकर भी सदैव मुँह उठाकर पिता, पति, भाई व भाई की ओर तकती रहती है। समाज में परित्यक्ता नारियों की संख्या अब बड़ी मात्रा में बढ़ने लगी है। प्रसन्नता भी होती है, यह देखकर कि लड़ने की प्रवृति ने स्त्री को स्वयं सिद्धा बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है।  किसी की पत्नी, किसी की बेटी, किसी की बहु बनना बुरा नहीं है, मगर जब हमारे सम्मान के मूल्यों पर यह रिश्तें मिल रहे हो तो सौदा महंगा है। माना कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक होते है परन्तु जब यह दोनों ओर से सहयोगात्मक हो तो ! गीता बबिता ने अपने पिता को अपने नाम से पहचान दिलायी। कल्पना चावला के पिता कौन थे ? निर्मला सीतारमण के पति कौन है ? इन प्रश्नो के जवाब अधिकत्तर लोगो को नहीं पता होंगे परन्तु ये महिलाएं कौन है और क्या कर सकती हैं यह आज पूरी दुनिया को पता है। 

هناك تعليق واحد:

  1. स्त्री शक्ति ही देश का भविष्य सवांर सकती हैं|

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