बुधवार, 15 अगस्त 2018

मन में अभी अंधेरे हैं !




मैंने अपना सारा बचपन उनके साथ गुजरा है !
दादाजी होकर भी मुझको दोस्त जैसा सहारा है !!





दिल में बसे हुए हो अब भी लगता नहीं अब चलें गए !
घर में साया बनकर अब भी मन में यूँ ही बसे रहे !!





चलें गए हो हमें छोड़कर सुना-सुना लगता हैं !
आज जन्मदिन है आपका मन को अनमना लगता हैं !!





 


क्या अब वापिस आ पाओगे ?
मेरा बचपन लौटा पाओगे ??
सारे प्रश्न अधूरे हैं !





इंतज़ार करता हूँ अब भी मन में अभी अंधेरे हैं !
काम आपके  पूरे कर लूँ, तब भी स्वप्न अधूरे हैं !! 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

amazon

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...