भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और इस देश में किसान को अन्नदाता कहा जाता है। देश की वित्त व्यवस्थाओं का संयोजन करते समय सरकारें सभी वर्गों का ध्यान रखने का प्रयास करती है। विगत कुछ वर्षों से मेरे राज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कृषकों एवं कर्मचारियों के हितों की नीतियों का निर्माण कर शेष सभी वर्गों को नजरअंदाज कर दिया है।
सरकार की इन् नीतियों के कारण सामान्य मध्यम वर्ग, व्यापारी, छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, शिक्षा एवं स्वास्थ्य में जो निजी संस्थायें कार्य कर रही है, उनकी भी भरपूर उपेक्षा हुई है। देश एवं प्रदेश के विकास में सभी का सहयोग होता है, सबकी भूमिकाएं होती है, सबका परिश्रम होता है। तभी देश खड़ा होता है, परन्तु सरकार अपनी नीतियों का निर्धारण करते समय सबके विकास को छोड़कर वोट बैंक की पॉलिसी से कार्य करती है। ऐसे में कई वर्ग जो सड़कों पर आने पर मतदान के दिन या तो सरकार के विपक्ष में मतदान करते है या अपने घरों में चुपचाप बैठकर मतदान जैसे पुनीत कार्य की भी उपेक्षा करते है।
कृषि अर्थव्यवस्था के पहलु देखें तो सरकार सहकारी बैंकों से शुन्य प्रतिशत ब्याज़ दरों पर ऋण, प्राकृतिक आपदा पर मुवाअजा और अब सरकारी योजना की पराकाष्ठा तब हो गई, जब मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर भवान्तर योजना से सरकार किसानों को पैसा बाँटकर अपने पक्ष में करने में लगी है। देश-प्रदेश में जब भी कभी वित्त व्यवस्था की चर्चा होती है, तो किसानों की भूमिका पर केंद्र बिंदु होता है। परन्तु क्या किसी क्षेत्र का विकास उस क्षेत्र की बेहतरीन शिक्षा एवं उत्तम स्वास्थ्य के बगैर सम्भव है, कदापि नहीं !
सरकारें समझें किसी क्षेत्र की उत्तम और बेहतर व्यवस्थाओं को सार्वजनिक रूप से निजीकरण के माध्यम से चलना उत्तम होता है। आज शहरों में या गाँव में निवासरत लोगों की जीवन पध्दति में अधिक पैसा खर्च करके उत्तम व्यवस्थाओं की ओर जाने का माद्दा बड़ा है। सरकारी व्यवस्थाओं पर उस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों अधिकारीयों को भी भरोसा नहीं होता !
सरकारें जानती है सब बातें ! परन्तु निजीकरण को बढ़ावा देने से डरती हैं। सुविधाओं को मुहैया करने से बचती है।
जनसुविधाओं की बेहतरी के लिए ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को भी निजीकरण से जोड़ने का जो लक्ष्य है, वही उत्तम प्रयास है। इन्हे तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का माध्यम सदैव निजी शिक्षण संस्थाओं एवं नर्सिंग होम को भी बनाया जाता हैं। सरकार आँखें खोलकर नहीं बल्कि दिल खोलकर बाँट रही है। तभी मंदसौर क्षेत्र में किसान आंदोलन के दौरान जो दुःख सामने आया वो विपक्षी राजनीति के लिए उपयोगी बिंदु एवं मुद्दे थे, परन्तु क्या वास्तव में प्रदेश का किसान बसों को जलने वाला ही है? बिजली की चोरी करने वाला ही है? डोडाचूरा की तस्करी करने वाला ही है? उत्तर मिलेगा 'नहीं'! और दोष दिया जायेगा सरकारी नीतियों को! मोदी जी ने "सबका साथ-सबका विकास" का नारा तो दिया परन्तु प्रदेश सरकार अपनी योजनाएँ उसी के अनुरूप बनायें तभी क्रांति होगी और विकास पनपेगा।
सरकार की इन् नीतियों के कारण सामान्य मध्यम वर्ग, व्यापारी, छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, शिक्षा एवं स्वास्थ्य में जो निजी संस्थायें कार्य कर रही है, उनकी भी भरपूर उपेक्षा हुई है। देश एवं प्रदेश के विकास में सभी का सहयोग होता है, सबकी भूमिकाएं होती है, सबका परिश्रम होता है। तभी देश खड़ा होता है, परन्तु सरकार अपनी नीतियों का निर्धारण करते समय सबके विकास को छोड़कर वोट बैंक की पॉलिसी से कार्य करती है। ऐसे में कई वर्ग जो सड़कों पर आने पर मतदान के दिन या तो सरकार के विपक्ष में मतदान करते है या अपने घरों में चुपचाप बैठकर मतदान जैसे पुनीत कार्य की भी उपेक्षा करते है।
कृषि अर्थव्यवस्था के पहलु देखें तो सरकार सहकारी बैंकों से शुन्य प्रतिशत ब्याज़ दरों पर ऋण, प्राकृतिक आपदा पर मुवाअजा और अब सरकारी योजना की पराकाष्ठा तब हो गई, जब मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर भवान्तर योजना से सरकार किसानों को पैसा बाँटकर अपने पक्ष में करने में लगी है। देश-प्रदेश में जब भी कभी वित्त व्यवस्था की चर्चा होती है, तो किसानों की भूमिका पर केंद्र बिंदु होता है। परन्तु क्या किसी क्षेत्र का विकास उस क्षेत्र की बेहतरीन शिक्षा एवं उत्तम स्वास्थ्य के बगैर सम्भव है, कदापि नहीं !
सरकारें समझें किसी क्षेत्र की उत्तम और बेहतर व्यवस्थाओं को सार्वजनिक रूप से निजीकरण के माध्यम से चलना उत्तम होता है। आज शहरों में या गाँव में निवासरत लोगों की जीवन पध्दति में अधिक पैसा खर्च करके उत्तम व्यवस्थाओं की ओर जाने का माद्दा बड़ा है। सरकारी व्यवस्थाओं पर उस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों अधिकारीयों को भी भरोसा नहीं होता !
सरकारें जानती है सब बातें ! परन्तु निजीकरण को बढ़ावा देने से डरती हैं। सुविधाओं को मुहैया करने से बचती है।
जनसुविधाओं की बेहतरी के लिए ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को भी निजीकरण से जोड़ने का जो लक्ष्य है, वही उत्तम प्रयास है। इन्हे तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
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