शनिवार, 29 सितंबर 2018

सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "

सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "
सच होते सपने, " प्रधानमंत्री आवास से "

एक गीत है " ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर तो पहले आ के मांग ले !" घर को लेकर गीतकरो ने कई गीत लिखें।  नेताओं ने बहुत सपने दिखाए, फिल्म निर्देशक ने "नायक" फिल्म  में झुग्गी-झोपडी के लोगो को एक दिन के मुख्यमंत्री काल में घर दिलावा दिए। सपनों का यह कार्य कभी गरीबों के जीवन में हकीकत बन कर सामने आएगा, ऐसा लगता नहीं था। 2014 चुनावों के पश्चात देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  जो योजनाएं भारत भूमि पर हकीकत की दुनिया में उतरी, उसमें "प्रधानमंत्री आवास योजना" की अहम् भूमिका हैं। झुग्गियों में रहकर जीवन यापन कर रहे लोगो को पक्की छत मिली और ' वो तमाम सुविधाएँ जो सामान्य मानवीय जीवन के लिए परम आवश्यक हैं ' जुटाना प्रारम्भ का दी। धीरे-धीरे चले मकान निर्माण की यह शृंखला अब बड़े स्वरूप में हमारे सामने आ रही हैं। किसी भी शहर का समग्र विकास न हो तो बड़ा शहर भी अपनी झुग्गियों को देखकर रोता  नज़र आता हैं। अब शहरों की झुग्गियों का वातावरण पूर्व स्वरुप में न भी बदला हो मगर ग्रामीण क्षेत्रों में पंच-सरपंचों के माध्यम से कच्चे मकानों में बदलाव नज़र आने लगा हैं। 


राजनीति भी तेज़ हो गई हैं 

प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्मित घरों में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के चित्रों वाली टाइल्स को दीवालों पर लगाया जा रहा है। इससे उस घर में आवास करने वाले तो गौरव का अनुभव कर रहे है, मगर विरोधियों को उन चित्रों से कष्ट का अनुभव हो रहा हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के मित्रों द्वारा इस बाबत टिप्पणियां आने लगी है। वर्षों से यह देश नेहरू, इंदिरा, राजीव के चित्र एवं नामों से उल्लेखित योजनाओं को सहजता से स्वीकार कर रहा है, परन्तु पहली बार पक्के आवासीय मकान बनाकर लोगो के जीवन को खुशहाल और संजीदा बनाने वाले प्रधानमंत्री के चित्र से विपक्ष दुखी हैं। ये देश सन 1975 से "गरीबी हटाओ !" का नारा झेल रहा है। न गरीबी हटी, न गरीब के हालात बदले ! अब जब शासन की विभिन्न योजनाएं सीधे गरीब के बैंक अकाउंट, रसोई में गैस, सर पर छत एवं उत्तम स्वास्थ, शिक्षा  जैसी योजनाओं के साथ बदलाव दिखा रही है, तो विपक्षी आगामी 2019 में भी मोदी के विकल्प के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं का पा रहे है। 



स्वच्छता अभियान की भी भूमिका अहम् 

प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ-साथ आम नागरिक के जीवन में बदलाव लेन में स्वच्छता अभियान की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं। झुग्गी-झोपड़ियों और गावों में पक्के मकान निर्माण के साथ-साथ शौचालय का भी निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया। स्वच्छता के क्षेत्र में शौचालय निर्माण से भी दूषित वातावरण में कमी आई हैं, सरकारी प्रयासों के साथ-साथ दैनदिन जीवन में जनभागीदारी एवं समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली सामाजिक संस्थाएं भी आगे आई हैं। इन सबके सकल प्रयासों से हम एक उत्तम राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर हो पा रहे हैं। 

मानसिकता में बदलाव 

मनुष्य के जीवन जीने की पद्धति में विकास होता है, तो उसकी समग्र सोच भी परिवर्तित होने लगती है। मानसिकता यदि उच्च दिशा की और कार्य करती है, तो व्यक्ति विकासशील हो जाता हैं। सरकारी प्रयास भी उस दिशा में काम करते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना से सिर्फ आवास का बदलाव नहीं सम्पूर्ण मानसिकता का बदलाव किया है। जब व्यक्ति झोपडी से निकलकर पक्के मकान की ओर जाता है, तो वह स्वयं भी विकास के मार्ग की ओर जाने का प्रयास करने लगता हैं। 

"अच्छे दिन आएंगे" जुमला नहीं 

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2014 चुनावों के पूर्व अच्छे दिन आने का नारा दिया था, अब जब हज़ारों मकान बनकर तैयार हैं। आम नागरिकों के मन में पक्के मकान में रहने का सुख अर्जित हो रहा हैं। उज्ज्वला योजना से घरों में गैस कनेक्शन मिल रहे हैं।  बिजली, पानी, सड़क की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हुई हैं। शौचालयों के निर्माण एवं स्वच्छता से से स्वास्थ पर उत्तम प्रभाव पड़ा हैं। प्रधानमंत्री जन औषधि के माध्यम से कम मूल्य पर दवाईयां उपलब्ध कराई जा रही हैं। केंद्र सरकार घोटालों की सरकार न होकर काम करने वाली ईमानदार सरकार हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से पाकिस्तान को उसके घर में मारने की हिम्मत सरकार जूता पाई हैं, तो क्या यह अच्छे दिन नहीं ? काम अधूरे है, मगर पुरे होंगे !

सपनो की राह बड़ी होती हैं 

मनुष्य के सपनों की राह बड़ी होती है, जेब भले छोटी हो, चाह बड़ी होती है ! "हाथ से हाथ मिलाकर चल बन्दे हकीकत की राह बड़ी होती है"। 70 साल तक कार्य करने वाली सरकारों ने देश के विकास के लिए कुछ नहीं किया, यह कहना कदापि ठीक नहीं ! जो भी प्रधानमंत्री बने सपने देश के विकास की राह ही चुनी मगर आम व्यक्ति के जीवन में सरकार के निर्णयों का प्रभाव नज़र आये, यह अब सामने आने लगा है ! पहले भी हमने अटल जी को मात्र पाँच साल देकर सत्ता से बहार कर दिया, मुझे लगता है अब ऐसा नहीं होगा ! एक बार पुनः यह सरकार आएगी और 2022 तक जो कार्य पूर्ण करने का स्वनिर्माण प्रधानमंत्री जी ने लिया है, उसें पूर्ण करेगी। 


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खली हुई आँखों से हमने 
सपना सच होते देखा है !

राह कठिन बड़ी थी फिर भी 
मंजिल को छूते देखा हैं !!

आगे दौर कठिन आएगा 
जात-पात पर लड़वाएंगे !

हमकों नहीं भ्रमित होना अब 
मंजिल को पाते रहना है !!

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पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 


रविवार, 23 सितंबर 2018

पैकेज पध्दति हमारे संस्कार नहीं !

package system
पैकेज पध्दति हमारे संस्कार नहीं !


आज का देखों दोस्तों कल किसने देखा है ?  सरकारी नौकरियों के लिए अब समय निकल चूका है, प्राइवेट नौकरियां एवं स्वयं का व्यवसाय शासन की योजनाओं में शामिल है। मासिक वेतन कितना है ? यह प्रश्न बेमानी सा लगने लगा है। सब एक-दूसरे से पूछतें है, आपका पैकेज कितना है ? पैकेज संस्कृति ने हर व्यक्ति को ठेका पद्धति में लेकर खड़ा कर दिया है। व्यक्ति नौकरियों में अनुशासित होकर काम नहीं कर पाए और काम कराने वाले पर भी काम का दबाव हो तो कार्य पैकेज में अच्छा लगने लगता है।
विदेशों से नौकरियों पर जाने वाले लोगों के बारे में चर्चा सुनते थे, जब डॉलर को रूपए में परिवर्तित कर मेरे बच्चे का अमेरिका में सत्तर लाख रूपए का पैकेज है, कोई कहता है - पचास लाख का पैकेज है तो भारत में नौकरी करने वाले जो मासिक वेतन पर कार्य करतें थे अपने आप को पीछे की पंक्ति का मानने लगे। सरकारी नौकरियां कम होने लगी प्राइवेट नौकरियों में काम के बदले दाम की संस्कृति को बढ़ावा मिला और यहाँ भी पैकेज संस्कृति आ गई और कब संस्करों में घुल गई पता ही नहीं लगा।



सभी व्यवस्थाओं पर लागू 

धीरे-धीरे पैकेज सिस्टम सभी व्यवस्थाओं पर लागू होने लगा शादी में हलवाई, टेंट, लाइट, धर्मशाला हो या ब्यूटी पार्लर आदि सभी कार्य पैकेज सिस्टम में लागू हो गए है। समय का अभाव, भाव-ताव की झंझट और सुविधाओं एवं कम कष्ट में अधिक शौक पूरे करने की जो आदत आज की मानवीय स्थिति में व्यक्ति को पड़ गई है, उसके कारण मनुष्य पैकेज में कार्य देकर निश्चिंता का भाव प्रकट करता है। विगत दिनों एक व्यापारिक मित्र से पूछने पर उसने बताया कि हमारे यहाँ चार्टेड अकाउंटेंट, फॅमिली डॉक्टर का परामर्श एवं कई पारवारिक व्यवस्थाएं पैकेज पर होती है। जिसके कारन काम रुकता नहीं हैं। वार्षिक पैकेज होने से साल में एक बार भुगतान कर संकट से मुक्त हो जाते है।



पूजा-पाठ एवं मंदिरों में पूजा पैकेज 

इन दिनों पूजा पाठ और मंदिरों में भी पैकेज के कारन कुछ लेकर नहीं जाना पड़ता है। पंडित जी फूल-माला, कुंकु, नैवैद्य आदि लेकर सभी व्यवस्थाएं स्वयं जुटा देते है, जिससे भक्तों को  अभिषेख, पूजा, यज्ञ, जनेऊ, विवाह, कर्मकांड सभी के लिए मात्र पैकेज का मूल्य पूछकर भुगतान करना होता है। सेवा के बदले सेवा का यह तरीका मनुष्य को व्यावहारिक बनाने की अपेक्षा क्रियात्मक बना रहा है। 


यह तो हद हो गई 

इन दिनों पकडे पाँच नक्सलवादी संगठन के लोगों ने खुलासे में बताया की हमारे संगठन में आतंक के लिए कार्य नियोजन के लिए पैकेज तय किये जाते हैं। प्रत्येक संगठन अपने नुमाइंदे को निश्चित धनराशि उपलब्ध कराकर निश्चित कार्य सौंपता हैं। पहले भी अपराध जगत में "सुपारी" शब्द का उपयोग किसी की हत्या के पैकेज के रूप में किया जाता था और उस जगत के लोग उसे गर्व का विषय मानते थे। पैकेज तय करते समय उत्तरदायित्व की गंभीरता एवं मन में कार्य करने की हटधर्मिता सबसे महत्वपूर्ण होती है। जिवंत कार्यक्षमताओं वाले जीवट व्यक्तित्व ही पैकेज की महत्ता को प्राप्त करते हैं। 



चिकित्सा के क्षेत्र में पैकेज की सफलता 

निजी चिकित्सालयों ने पैकेज को अभिनव प्रयोग के रूप में लिया और सफल हो गए। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्टार पर चलने वाले चिकित्सालय समूहों ने ह्रदय, किडनी, कैंसर इत्यादि गंभीर बिमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए पैकेज का निर्माण किया। चिकित्सालय में पाँच सितारा संस्कृति में मेडिक्लेम यानि चिकित्सा बीमा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पेशेंट को भर्ती कराने के पश्च्यात सम्पूर्ण देखभाल चिकित्सालय द्वारा की जाती हैं। आर्थिक रूप से सक्षम लोगो के लिए यह सब आसान हो गया हैं। 



भविष्य पर प्रभाव 

पैकेज संस्कृति का भविष्य पर प्रभाव कैसे होगा वर्तमान में यह कह पाना संभव नहीं परन्तु इतना तो तय है कि practical life में हम भावनाओ का हनन करते जा रहे हैं।  मानव ATM की तरह मशीनी जीवन जी रहा हैं। give n take की संस्कृति की जुड़वाँ इस पैकेज संस्कृति ने कमाई और सुविधाओं का जरिया तो खोज लिया परन्तु एक-दूसरे के सुख और दुःख में खड़े होकर सेवा भाव से काम करने की जो हमारी संस्कृति थी उसे धूमिल कर दिया है। वास्तु विनिमय से प्रारम्भ होने वाली भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य पैकेज पद्धति को स्वीकार तो है परन्तु उसकी सफलता संदेहास्पद ही लगती है। हमें पुनः अपने संस्कारों पर आना पड़ेगा, हम मिलकर काम करने की अपनी पध्दति से ही सुखी रह पाएंगे।  यही हमारी जीवन पद्धति है और यही हमारे संस्कार हैं। 


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गुरुवार, 13 सितंबर 2018

विनायक तेरे द्वारे


मैं करूँ नमन "विनायक"
                                    रंग भर दूँ तेरे "द्वारे"

काम और सम्मान अपना है 
                                    न्योछावर तेरे "द्वारे"

रंग कहते है ये "जीवन" नाम 
                                         रंगो भरा हो तेरे "द्वारे"

हर रंग अपने संग सारे          
                                सपनों से भरा पड़ा है तेरे "द्वारे" 

सपने मेरे नहीं छुपे हैं सब 
                                               सतनाम हो तेरे "द्वारे" 

पूर्ण करना मेरी ये विनती 
                                                मैं अर्पण हूँ तेरे "द्वारे"

हे सहारा एक तू ही भगवान 
                                              अब नैया तेरे "द्वारे"

मैं करूँ नमन "विनायक"
                                                  रंग भर दूँ तेरे "द्वारे"

सोमवार, 10 सितंबर 2018

क्या "तिलक" के स्वप्न को साकार करेंगे ?

LOKMANYA TILAK GANESHOTSAV
क्या "तिलक" के स्वप्न को साकार करेंगे ? 


"तिलक" के स्वप्न को पूर्ण,
                                     कर पाएंगे क्या आज भी !
समरसता के दिव्या मंत्र,
                                     सीखा सके यदि आज भी !!

स्वराज्य प्राप्ति का नारा देकर,
                                 धर्म सह राष्ट्र धर्म साध लिया !
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
                                    सब ने देश का काम किया !!

"गणेशोत्सव" के माध्यम से हम,
                                         दुश्मन से लड़ पाए थे !
सभी धर्मों से तब भी,
                                                गणपति पुजवायें थे !! 

प्रजातंत्र के संस्कारो की,
                                    तिलक ने राह दिखाई थी !
स्वराज्य के अधिकार की,
                                           एक आवाज़ लगाई थी !!

उत्साह हममें आज भी है,
                                       उत्सव को मनवाने की !
संस्कारों को याद रहें सब,
                                          राष्ट्र धर्म संग जाने की !!

रविवार, 9 सितंबर 2018

क्या उनके लव मैरिज का परिणाम सही है ?

Bollywood love marriage & divorce
क्या उनके लव मैरिज का परिणाम सही है ?
समाज में विवाह नामक संस्कार सदैव प्रासंगिक रहे है और रहेंगे। समाज का कोई भी तबका इस संस्कार से वंचित नहीं रह पाता है। समाज में विवाह करना, धर्म आधारित संस्कारों के अनुसार विवाह करना, जाति के लड़के या लड़की के साथ विवाह करना हमारी जीवन पद्धति का अंग है।
                                                                                                     इन दिनों में भी संस्कारवान परिवारों के लिए यह सामान्य बात है, परन्तु भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में जब माता और पिता दोनों पैसा कमाने अपने रोजगार में व्यस्त हो बच्चों को अपने संस्कारों के अनुरूप ढाल पाने में सफल कम ही हो पा रहे हैं। सारे घरों में ऐसा ही हो रहा हैं, यह सोचना सही नहीं है! अपने बच्चों के संस्कारों के प्रति जागरूक रहने वाले परिवारों की संख्या भी कम नहीं हैं। 

अंतरजातीय विवाह की संख्या में वृद्धि 

इन दिनों प्रेम विवाह के मसलों में अंतरजातीय विवाह की संख्या में कई गुना वृद्धि हो गई है। सामाजिक संगठनों में युवा संगठनों की सक्रियता में कमीआई है।  बच्चों का रिश्तेदारी में, सामाजिक कार्यों में आने-जाने में अरूचि एवं प्रत्येक व्यक्ति की व्यवस्था पूर्ण जिंदगी उसका बड़ा कारन है। अंतरजातीय विवाह के के दुष्परिणाम सम्पूर्ण परिवार एवं अगली दो पीढ़ियों पर पड़ते हैं, यह बात समझने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। कई अंतरजातीय विवाह माता-पिता की सहमति से भी संपन्न होते हैं। उनकी कामयाबी की सम्भावना थोड़ी अधिक होती है। इन दिनों कई समाजों में लड़कियों की संख्या में कमी के कारन भी विसंगतियां उत्पन्न हो रही है, जिससे समाज अंतरजातीय विवाह की और बाद रहा है। ऐसे में प्रेम विवाह में होने वाले अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता मिलने लगी हैं।

समाज में प्रभाव एवं पीढ़ी के सामने संकट 

दो अलग-अलग समाज के माता-पिता होने से बच्चों के सामने अपने रिश्तेदारों, संस्कारों, त्योहारों एवं अंततः किस धर्म को मान्यता प्रदान करे, यह संकट सामने आ जाता है। समाज में भी घर में आने वाली बहु के धर्म, समाज एवं संस्कार अलग होने का प्रभाव पड़ता है। 
हमारे यहाँ मुसलमान + ब्राह्मण, सिंधी + राजपूत, कायस्थ + ईसाई धर्म का एक दूसरे से वैवाहिक सम्बन्ध होने से वह समाज में मान्य हो पाना संकट का विषय हैं। कई बार प्रेम विवाह के समय जब माता या पिता इस सदमे को सहन नहीं कर पाने के कारन दम तोड़ देते है तो कई राज्यों में ओनर किलिंग जैसे मसले होकर प्रेमी जोड़ों की हत्या हो जाती हैं। 

उपाय मेरे विचार से 

मेरे अपने अनुभव से मैंने यह जाना है कि प्रेम और विवाह दो अलग-अलग न होकर एक ही है। प्रेम होकर स्वीकार्य विवाह सफल और स्वीकार्य विवाह पश्च्यात प्रेम हो जाए तो भी सफल ! विवाह दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का नहीं मिलान होता है। पहले कबीलाई संस्कृति में अपने ही समाज के लड़के से अपनी ही रिश्तेदारी में विवाह की परम्परा लम्बी चली आई है। प्रेमी जोड़ो को विवाह करते समय यह सोचना चाहिए की जीवन में प्रेम से भी बड़े रिश्तें और भी हैं। 


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परिवार के संस्कारों को साथ मिलाकर लायेगें !
आओ अब हम दोनों मिल नया संसार बसाएंगे !!

तेरी जाति ऊँची और मेरी जाति नीची क्यों हैं !
ऊँच-नीच के झगड़े में प्रेम मेरा गुम क्यों हैं !!

आओ मानव सिंद्धान्तो से नै रह पर जायेंगे !
प्रेम विवाह किया है फिर भी रस्में खूब निभाएंगे !!



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 पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

|| इको फ्रैंडली गणेश ||

Eco Friendly Ganesha
Eco Friendly Ganesha


पर्यावरण की सुध का देखो,
                              आया नया जमाना !
मिट्टी की मूरत अपने घर में,
                              जरूर आजमाना !
प्रकृति सीखा रही है हमको,
                                    मिटटी में मिल जाना !
जीवन में न करो झमेला,     
                                     एक दिन मिट ही जाना !
जहरीले रंगो से देखो,
                                     बिगड़ रहा है पानी !
नकली मिटटी की मूर्ति,
                                  से पुण्य करे है दानी !
आने वाली पीढ़ी को हरा,
                               गुलशन देना है !
इको फ्रेंडली गणेश जी का,
                                ही अब घर में डेरा है !

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

बंद हुआ कामयाब, लूट गई अर्थव्यवस्था

bharat band
बंद हुआ कामयाब, लूट गई अर्थव्यवस्था !

सुने हैं बाज़ार और लूट गई "अर्थव्यवस्था "
जात-पात की हुई लड़ाई और बिक गई "अर्थव्यवस्था"

उदास चेहरे, खाली गल्ले और चौक है सुने 
नेताओं की सुधर जाएगी इससे "अर्थव्यवस्था"

हिन्दू हित से बदल गई है देश में सारे "रास्ते" 
लूट-पाट में व्यस्त जो थे भटक गए है "रास्ते"

सुना मन है कुर्सी बिन नहीं जैम रही उनकी "व्यवस्था"
देश को बाँट सुख मिल जाये चल रही यही "व्यवस्था"

जो लड़ते दलित लड़ाई कोने में बैठे हैं 
सत्ता के चाबी न होने से हो गई खूब "हसाई"

समझ न आया कैसे बांटे और कैसे "लूटेंगे"
अध्यादेश का मौका मिलता है कोई नहीं "छूटेंगे"

चलना हमको अभी समझ कर और सुध रखना है 
भाई-भाई से हाथ मिलाकर ही हमको चलना है 

सोमवार, 3 सितंबर 2018

समरस समाज से ही देश का विकास संभव !

st/sc act, sapaks
SC/ST कानून 

सरकार SC/ST कानून का अध्यादेश लाकर अपने सबसे विश्वसनीय मतदाता के सामने कसौटी पर खड़ी है। देश में राष्ट्रवादी विचारधारा को सदैव सवर्ण समाज ने बढ़ावा दिया है। आज़ादी के पश्च्यात कांग्रेस ने अपने बुद्धि चातुर्य के बल पर देश में बंटवारे की राजनीती की, जिसे बाद में वोट बैंक पॉलिटिक्स भी कहा जाने लगा । 
           
                कांग्रेस की इस वोट बैंक पालिसी में मुस्लिमों और ईसाईयों को अल्पसंख्यक समाज का दर्जा देकर विशेष रियायतें देकर अपने साथ किया, वहीँ दलितों और वनवासियों को आरक्षण देकर अपने साथ किया। 

जनसंघ के ज़माने से संघ और राष्ट्रवादी विचारों को बनिया-ब्राह्मणों की पार्टी कहकर हांसिये पर रखा गया। अपने 60 वर्षों के शासन में कांग्रेस ने वोट बैंक का भरपूर उपयोग किया, परन्तु अल्पसंख्यकों की जीवन पध्दति में विशेष बदलाव आया हो ऐसा नज़र नहीं आया, और जब उन्हें समझ आया की हम चार पीढ़ियों से शहरों में पंचर की दुकाने ही चला रहे है। उन्होंने समाजवादी और अन्य दलों की ओर रुख कर लिया। यही अवसर था, जब मुस्लिम वोट छिटकने से कांग्रेस कमजोर हो गई।  भारत में 60 वर्षों से विपक्ष जो बिखरा था ! हिन्दू मतदाता जो बिखरा था ! वह एक हो गए। 
                                          2014 के चुनावों में हिन्दुओं के साथ कई स्थान पर मुस्लिम वोटर ने भी बदलाव के लिए वोट किया और भारतीय जनता पार्टी समर्थित N.D.A ने 313 सीटें जीतकर सरकार बनाई। ऐसे में अन्य दलों में हड़कंप मच गया, जो हिन्दू वोट वर्षों से बांटकर हिन्दू बहुल गणराज्य में कष्ट झेलकर दूसरे दर्जे पर था, अचानक मुख्य धारा में आ गया !


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ज़हर फैलाया है जनता को बांटकर :-60 सालों में देश में ऊँच-नीच, जात-पात मिटने का कोई प्रयास नहीं हुआ, सरकारों ने जहर भरकर हिन्दुओं को एक-दूसरे के सामने खड़ा किया ! हिन्दू, हिन्दू का दुश्मन बना रहा और मुस्लिम तो प्रश्न ही नहीं, वो तो सरकार का चहेता था। "जनसंघ/भा.ज.पा सांप्रदायिक पार्टी है" कहकर देश को बंटा रहने दिया। आरक्षण जो आम्बेडकर जी ने संविधान निर्माण के समय 10 वर्षों के लिए लागू किया था, को वर्षों तक चलता रहा। धीरे-धीरे आरक्षण में बढ़ोत्तरी होती गई और सवर्ण हांसिये पर चले गए। गरीबी हटाओं  का नारा देने वाली पार्टी ने कभी अमीर नहीं बनने दिया गरीबों को। उनकी गरीबी आज तक कम नहीं हो पाई। 


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अध्यादेश से हिंदुत्व की एकता पर संकट :- हिन्दू समाज में आपसी लड़ाई एक बार पुनः इस अध्यादेश के माध्यम से सड़कों पर आ गई है। उन्नति के शिखर पर चढ़ते हुए राष्ट्र जब अपने विकास की राह पकड़ता है, तो राजनितिक परिस्थितियां उस पर संकट के बदल मंडरा देती है। सवर्णो को अपने अस्तित्व की लड़ाई नज़र आ रही है परन्तु उत्तर प्रदेश के माध्यम से इस देश में 283 सीटें जीतकर जो अच्छे दिन लाने वाली सरकार आई है, उस पर एक विकत समस्या का निर्माण हो गया है। 

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समरसता का काम अधूरा न रह जाए :-साधु-संतों, ऋषि-मुनियों एवं देवी-देवताओं ने इस संपूर्ण हिन्दू समाज को एक साथ रहकर एक समरस समाज के निर्माण का जो मंत्र दिया था वह अब अधूरा ही रह जायेगा ऐसा भय नज़र आने लगा है। विपक्षी जानते है की समरस हिन्दू समाज ही एक उन्नत एवं विकासशील राष्ट्र के निर्माण का कारक बनेंगे। ऐसे में इस समरस समाज को तोड़कर ही अपने मंसूबो को पूरा किया जा सकेगा !

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राहों में कितनी अड़चन आ जाये !
हमको कोई डिगा न पाए !!
हम हिम्मत से काम करेंगे !
अपने बल पर अड़े रहेंगे !!
समरस समाज हो तो ही उद्धार !
समरस समाज देश का आधार !!
मिलजुल कर सब काम करेंगे,
ऊंच-नीच को दूर करेंगे !
देश का नव निर्माण करेंगे !!
राजनीती सत्ता की चाहत !
मानव को नहीं मिलती राहत !!
बंटवारे का उनका काम !
समरसता ही एक समाधान !!

शनिवार, 1 सितंबर 2018

पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

पकोड़ा व्यवसाय
पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग 

भारत जैसे विशाल देश में बेरोजगारी पर सरकारों के प्रयास ओछे अर्थात छोटे क्यों सिद्ध होते है।  यह विचार प्रत्येक नागरिक के मन में उठता है। बचपन में जब इंदिरा जी के शासन में "गरीबी हटाओ !" का नारा सुनता था ,तो लगता था की नेहरू परिवार की वंशज एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व की नारी ने यदि गरीबी हटाने का संकल्प लिया है तो पूर्ण होगा ही। 
                                   
 शनै शनै उम्र बढ़ती गई में वयस्क हो गया और गरीबी भी वयस्क हो गई पर हट नहीं पाई। सहिष्णु इंदिरा जी को "गरीबी" पर दया आ गई उन्होंने उसे यही बसा दिया। 
                                                                                                                    
                                                                             पंचवर्षीय योजनाओं का दौर चला, नये रोजगार, उद्योग, नौकरियां भी बढ़ी ! देश का विकास भी हुआ ! मगर गरीबी और बेरोजगारी इस देश से दूर न हो पाई। ऐसे में जब देश विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान बना रहा हो, विश्व के कई देश भारत में अपनी पूंजी लाकर व्यवसाय स्थापित कर रहे हों, बेरोजगारों की संख्या कम होने की गारंटी बन जाती है! मगर 15 साल की कांग्रेस सरकार एवं 4 साल का मोदी शासन भी इस विषय को गंभीरता से नहीं ले पाया। 
unemployment
पकोड़ा व्यवसाय भी बदलता है जिंदगी के रंग

                                                                                                                                 हमारे देश में जनसँख्या के विकास पर कोई रोक नहीं है। सीमित भूमि, सीमित संसाधन एवं सरकारी प्रयास असफल हो जाते है। शासन को लगता है मेरी कार्य पद्धति तो उत्तम है फिर असफल कहाँ हुआ ! जब महंगाई के बढ़ने का कारण मांग और आपूर्ति होती है, तो बेरोजगारी का कारण जनसंख्या असंतुलन क्यों नहीं हो सकता !
                                                                   हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने "पकोड़े वाला" बयान क्या दिया, सब चढ़ बैठें उन पर ! मगर सोचा नहीं रोजगार क्या होता है। जीवन जीने के लिए पैसा और पैसा कमाने के लिए ईमानदारी से किया जाने वाला काम मिल जाये तो वह रोजगार नहीं है क्या ? मैं जिस शहर में रहता हूँ, वहाँ के एक मुख्य मार्ग पर चाट-पकोड़ी के ठेले बहुत प्रसिध्द थे। सरकारें बदलती है ! व्यवस्थाएँ बदलती है ! नगर में नगर पालिका ने शहर की व्यवस्थायें बदलने का जब निर्णय लिया तो सड़क की सभी अवैध अतिक्रमण की दुकाने हटाई गई, उसमें चाट-पकोड़ी के ठेले भी थे।  जनता को लगा बेचारे चाट-पकोड़ी के ठेले वाले कहाँ जायेंगे, मगर उसी सड़क पर सबसे बड़े चौराहे पर लगभग 80 लाख में बिकने वाली दुकान चाट-पकोड़ी वालों ने खरीद ली। नगर की जनता समझ गई यह मात्र रोजगार नहीं छोटा-मोटा उद्योग है, क्यूंकि सामान्य परिवार एवं आम आदमी 60-70 लाख की दूकान खरीदने का माद्दा नहीं रखता है। 
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प्रधानमंत्री आवास योजना 

                                              व्यवसाय, उद्योग-दुकाने और सरकारी नौकरियाँ ही रोजगार नहीं होते, जो मनुष्य की घरेलु एवं जीवन जीने की समस्या का निदान कर दे वही रोजगार है। सत्तर के दशक में "गरीबी हटाओ !"का नारा देने वाले दल के प्रमुख राहुल गाँधी युवाओं के विषय पर बेरोजगारी का चिंतन करते है। वर्तमान मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगो को पक्की छत बनाने के लिए ऋण उपलब्ध कराने से मकान निर्माण, शौचालय निर्माण से जुड़े दिहाड़ी वाले मजदुर हो या सीमेंट उद्योग, टाइल्स उद्योग या सेनेटरी व्यवसाय से जुड़े लोगो को उसके व्यवसाय में तेज़ी लाकर रोजगार में बढ़ावा देने का प्रयास किया है। 
होटल हो या चाट-पकोड़ी मजाक बनाने की अपेक्षा लोगो के घरों में चूल्हा जले, पेट भरें, कोई भूखा न रहे तथा आम नागरिकों के जीवन में छोटा ही सही पर बदलाव दिखे तभी उन्नति के शिखर पर भारत कार्य कर सकेगा। 

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नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...