गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !

कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !
कन्या पूजन केवल औपचारिकता न बने !
नवरात्री में सभी देवी  दुर्गा स्वरुप मातृशक्ति का आशीर्वाद जन-जन ने प्राप्त किया। गरबा पंडालों में डंडियां की धूम रही। नृत्य मनमोहक संगीत और रंग बिरंगी पोशाक से परिपूर्ण होकर धर्म और आध्यात्म के साथ जुड़ने का अवसर किसी भी व्यक्ति ने हाथ से नहीं जाने दिया।
                                                                          बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के इस युद में घर-घर एवं समाज में सामाजिक संस्थाओं के तौर पर कन्या पूजन एवं कन्या भोज के भी आयोजन किये गए। समाज में स्वीकार्य इस परम्परा को सभी ने सहर्ष स्वीकार किया। अनुसरण भी किया ! मगर क्या यह सब परम्पराओं का जीवन की सत्यताओं से जुड़ाव हो सकेगा, यह संभव नहीं लगता हैं।

कन्या में मातृशक्ति है स्वीकारना होगा 


ये देश समाज कन्या के इस स्वरुप को किस रूप में स्वीकार कर रहा है, यह देखकर भी विकृत मानसिकता वाले लोगो की संख्या में कमी नहीं आई है।  आज इस समाज में बेटियों को असुरक्षित माना जा रहा है। हम समाचार पत्रों और मिडिया के माध्यम से देखते है कि तीन वर्ष की कन्या से बलात्कार दो वर्ष की कन्या से अत्याचार तो समाज के विकृत रूप पर शर्म एवं घिन्नता का अनुभव होने लगता है। आज के इस युग में जब हमारे पास उन्नतशील होने की सभी परिस्थियाँ उपस्थित है। हम बेटी को दूसरे दर्जे की मान्यता कैसे दे सकते है। समाज में कई कुरीतियाँ जो हमने आज की असुरक्षा की भावना से उपजी थी। आज मोबाइल एवं कम्प्यूटर के युग में हमने आधुनिकता को तो स्वीकार किया है परन्तु स्त्री शक्ति को स्वीकारने में हमें बहुत देर हो गई हैं। अभी भी वक्त है, स्वीकार करने का ! समय पर यदि हम जाग गए तो हम एक उन्नत राष्ट्र के निर्माण की संकल्पना को साकार कर पाएंगे। 



घर से देना होंगे स्त्री-शक्ति सम्मान के संस्कार 


प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले के अपने भाषण में कहा था कि हमें सिर्फ बेटियों पर नहीं बेटों पर भी नज़र रखनी चाहिए। बेटा रात को कितनी बजे घर आता है ? उसके कौन मित्र है ? उसकी क्या आदतें हैं ? वह छोटे-बड़ों का अंतर समझता है या नहीं ? स्त्री के प्रति उसकी नज़रें ठीक दिशा में कार्य कर रही है या नहीं ? जिनको बेटियाँ है वे बेटियों को बांध कर घर में बैठा दे यह वर्तमान परिस्थिति में संभव नहीं है।

मुगलों के समय था असुरक्षा का भाव 

भारतीय इतिहास में जब मुगलों ने इस देश पर आक्रमण किया था तब हमारी बहु-बेटियां सुरक्षित नहीं थी।  उन्हें सुरक्षित करने के लिए रजस्वला होने से पूर्व उनका विवाह संपन्न करा दिया जाता था। इस देश में बाल विवाह की कुरीति ने इस कारण जन्म लिया। यह देश आक्रांताओं से असुरक्षित रहा और उन स्थितियों का सामना करने के बाद देश की परिस्थितियों को बदला है। आज देश में सर्वधर्म समभाव भी है ! स्त्री शिक्षा भी हैं और स्त्री को समान अधिकारों की बात भी की जा रही है। ऐसे में स्त्री की प्रति नज़रिए को बदलना बहुत आवश्यक हैं। हम ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ सबको अपनी जिंदगी जीने का हक़ दे सके तो ही हमारी शिक्षा चेतना शुन्य होने से बचेगी ! हमें नारी के सम्मान को प्रथम पायदान पर रखना होगा। 

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!

करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!
करूँ वंदना मातृ चरणों में ! कन्या पर अभिमान किया !!


माँ के चरणों में वंदन कर !
मैंने यह प्रण ठान लिया !!

मातृ शक्ति के मान बिंदु !
पर अपना सब कुछ त्याग दिया !!

करूँ वंदना मातृ चरणों में !
कन्या पर अभिमान किया !!

स्त्री शिक्षा की प्रगति में !
आग्रहपूर्ण व्यवहार किया !!

आओ हम सब मिलकर !
अब नारी का मान बढ़ाते हैं !!

गंगा की पावन धारा-सा !
निर्मल राष्ट्र बनाते हैं !!

हमने बचपन से सीखा हैं !
करना चरण वंदना माता की !!

लाज लिए अपनी आँखों में !
श्रद्धा भाव भरने की !!

भारत में नदियों को, भूमि को !
हमने माता माना हैं !!

नारी का सम्मान करें सब ! 
मानवता का नाता हैं !!

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

गाँधी ब्रांड को भुनाया कांग्रेस ने ! सपना साकार किया मोदी ने !!

गाँधी ब्रांड को भुनाया कांग्रेस ने !  सपना साकार किया मोदी ने !!


राष्ट्रपिता श्री मोहनदास करमचंद गाँधी  ने इस राष्ट्र के आज़ादी के स्वप्न को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अहिंसा, त्याग, सत्य, स्वछता के प्रेरक सन्देशों को देकर गाँधी जी ने देश को दिशा देने का प्रयत्न किया। आज़ादी के समय देश के एकमात्र राजनीतिक दल कांग्रेस ने गाँधी नाम और पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेकर इस देश में 60 वर्षों तक सत्ता का संचालन किया। इन 60 वर्षों में राष्ट्र निर्माण में आने वाली नीतियों का मार्ग स्वयं गाँधी जी ने कांग्रेस को प्रदान किया, तो क्या कांग्रेस गाँधी जी के उन सिद्धांतों के आधार पर सत्ता संचालन में कामयाब हो पाई। आज जब देश राजनीति के दूसरे दौर से गुजर रहा है, वक्त है उन सिद्धांतो की समीक्षा करने की !  क्या  सिद्धांतो कोण जनमानस तक पहुँचाने में कामयाब हो पाई कांग्रेस ? क्या स्वदेशी आंदोलन का महत्वपूर्ण सन्देश हमारे यहाँ कुटीर उद्योगों के रूप में घर-घर की बेरोजगारी दूर कर पाए ?क्या हम हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने में कामयाब हो पाए ? क्या हम स्वच्छता को राष्ट्रिय संकल्प के रूप में आंदोलन बना सके ? क्या देश में अब भी खादी अपने वजूद को प्राप्त कर चुकी है ?

हम राष्ट्र को गौरव प्राप्ति के मुद्दों को ही महत्त्वपूर्ण मानकर अंजाम देंगे तो भी गाँधी जी के सपनो को साकार करने में कामयाब हो जायेंगे !

आज भी हिन्दू समाज दूसरे दर्जे पर 

गाँधी जी ने आज़ादी प्राप्ति के पश्चात  जो बंटवार का निर्णय लिया उसमें भारत को हिन्दू समाज के लिए हिंदोस्तां नाम देकर प्रतिपादित किया था परन्तु 60 दशक बीत जाने के पश्चात् भी आज हिन्दू समाज एवं हिन्दू धर्म के प्रति निर्णयों में दूसरे दर्जे पर रखा जाता है। अम्बेडकर जी ने संविधान निर्माण के समय गाँधी जी के सपनो का ध्यान रख कर मुस्लिम समाज को अल्पसंख्यक होने के नाते बहु, पत्नी, बहुविवाह एवं अन्य कई रियायतें देकर बढ़ावा दिया। कांग्रेस को मुस्लिमों ने सदैव सुरक्षित सत्ता का केंद्र माना ! इन सम्पूर्ण निर्णयों में गाँधी जी के उसूलों की चिंता थी, परन्तु राजसत्ता प्राप्ति के पश्चात समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का चिंतन शायद न गाँधी जी दे सकें, न कांग्रेस अपने शासन में तय कर सकी। 



स्वदेशी आंदोलन पिछड़ा 

गाँधी जी के स्वदेशी अपनाओं आंदोलन के सन्दर्भ में प्रथम सरकार से ही हम पिछड़ने लगे थे। कहते है प्रथम प्रधानमंत्री के कपड़ों की व्यवस्था, धूम्रपान की व्यवस्था विदेशों से होती थी ! सरकार के निर्णय भी उसी दिशा में चल पड़ते है हमारे कृषक, हमारी शिक्षा, हमारी चिकित्सा और हमारा इतिहास तक अपने सही मार्ग का निर्धारण नहीं कर सका ! देश जब पीछे मुड़कर देखता है तो पता चलता है कि हम गाँधीवादी सिद्धांतो को काफी पीछे छोड़ चुके है। आज बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल उसमें बिकने वाली ब्रांडेड वस्तुएं, मेकलें की शिक्षा पद्धति हो या अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति, हमारे दैनदिन जीवन में अगर सुबह से रात तक हम गणना करे तो हम अपनी जीवन पद्धति में स्वदेशी को भूल चुके है। 


स्वच्छता का सन्देश नहीं पहुंचा, अब बदलाव दिखता है 

गाँधी जी ने अपने स्वयं के जीवन में सफाई को महत्पूर्ण मानकर जनता को सन्देश दिया। स्वच्छता के लिए कार्य करने वाले समाज को ईश्वर का दूत मान कर हरिजन नाम प्रदान किया परन्तु सरकार उस समाज को वोट बैंक मानकर लाभ तो देती रही परन्तु स्वच्छता को एक आंदोलन के रूप में देश के सामने रखने में कामयाब नहीं हो सकी। 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी  की सरकार बनने के बाद 2 अक्टूबर से स्वच्छता के लिए झाड़ू उठाकर देश को गाँधी जी के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया। अपनी टीम में 9 स्वच्छता दूत बनाकर जन-प्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र में यह सब करने का सन्देश दिया तो देश ने इसे क्रन्तिकारी कदम मानकर सहर्ष स्वीकार किया। आज देश के अधिकांश घरों तक शौचलय की सुविधा पहुंचाने का प्रयास सरकार कर रही हैं। 


शाकाहार और सादगी 

गाँधी जी के विचारों में शाकाहार और सादगी भी महत्वपूर्ण  स्थान रखता है। वैसे देश में कई प्रधानमंत्री आये और देश पर राज किया परन्तु सादगी पूर्ण जीवन की मिसाल कम ही कायम कर सके। विदेश एवं ब्रांडेड का शौक़ हो या जीवन के सादगीपूर्ण व्यवहार में भी कम लोग गाँधी जी के इस सिद्धांतों को साकार कर सके। शाकाहार चूँकि एक मानवीय व्यावहारिक पहलू है परन्तु न्यायपालिका एवं कार्यपालिका ने इस व्यक्तिगत निर्णयों की श्रेणी में रखकर तरजीह नहीं दी। 

चित्रों, भवनों और सड़कों तक सिमटें 

महात्मा गाँधी मार्ग, एम. जी.  रोड, गाँधी भवन, संग्राहलय, गाँधी वाचनालय तक सिमित रहकर गाँधी जी के विचारों को जन-जन तक नहीं पहुंचा पाई, कांग्रेस अब दुःखी है। स्वच्छता एक बड़े आंदोलन के रूप में विकास की नई गाथा  लिख रहा है। राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ को गाँधी का हत्यारा संगठन बताकर अपनी राह तों आसान की परन्तु गाँधी जी के सिद्धांतों को तरजीह नहीं मिल पाई 

आप यह लेख pravinbhaikikalam.blogspot.com पर पढ़ रहे है 

नमन

विचारों की अब गाथा नए स्वरूप में लिखी जा रही है। आज गाँधी जी की 150 वीं जयंती पर राष्ट्र उनको नमन कर रहा है, आओ संकल्प ले !
स्वदेशी अपनाये ! 
अहिंसा के पथ को स्वीकार करे ! 
सत्य का अनुसरण करे !
सादगी का जीवन जियें !
परन्तु अब देश का बंटवारा न हो ! इसका भी संकल्प करे। 

यदि आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो शेयर जरूर करे। 
पढ़ते रहे प्रवीण भाई की कलम से 

amazon

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...