मंगलवार, 24 मार्च 2020

कोरोना पर योग को संयोग नहीं सुयोग बनाओ


कोरोना पर भारी योगा
कोरोना पर भारी योगा

भारतीय जीवन मूल्यों में धर्म, संस्कार, संस्कृति, परंपरा, आध्यात्म और अपने जीवन मूल्यों पर स्थापित मार्ग पर चलने के परम्परा हैं। इस देश में युगों-युगों से भारतीय नागरिक कैसे होगा  उसका आचरण उत्तम करने के लिए स्वच्छ मन और पवित्र आत्मा की आवश्यकता होगी यह सभी को बचपन से समझाया जाता है। 


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हम जिन जीवन मूल्यों की अपनाते है उन मूल्यों का आधार मात्र धर्म नहीं बल्कि धर्म की स्थापना और उससे जुड़े कुछ ऐसे आधारभूत बातें होती हैं जो धरातल पर व्यावहारिक लगने में कठिन हो पर जिसने उन सभी बातों को अंगीकार कर लिया उसका जीवन सही मार्ग पर चलता नहीं बल्कि दौड़ने लगता है।  प्रकृति जन्य सुखों से भरा स्वयं के जीवन मूल्यों से अंतर मन एवं आंतरिक शरीर से सुखों का एक मार्ग हैं जिसे राम, कृष्ण, शिव एवं शक्ति सभी मानते हैं। वह हैं "योग"  आजकल जिस योगा भी कहा जाता हैं।  भोग विलास और पाश्चात्य जीवन पद्धति की ओर दौड़ते इस युग में प्रत्येक व्यक्ति योग की अपेक्षा मेडिक्लेम और उससे जुडी बीमा पॉलिसी  लेकर सुरक्षित महसूस करने का प्रयत्न करता हैं परन्तु मेरे शरीर में इतना सुख हैं की मैं योग के माध्यम से ईश्वर की भक्ति, आत्म संतुलित और स्वास्थ्य का अनुपम भंडार प्राप्त कर लूंगा यह सोच व्यक्ति के मन में आती ही नहीं हैं। 

कुछ दिनों पूर्व एक जैनाचार्य जी के मार्गदर्शन में मैंने सुना था कि आजकल व्यक्ति सुबह उठकर सबसे पहले देखता हैं की मेरा मोबाइल चार्ज  हैं की नहीं वह यह नहीं देखता की मैं, मेरा शरीर मेरी आत्मा और जीवनचर्या की योजना चार्ज हैं या नहीं।  भौतिक सुखों की होड़ जिंदगी को हरा रही हैं।  ऐसे में व्यक्ति का स्वयं चार्ज होना जरुरी हैं।  जीवन के इस कठिन पथ पर पग -पग पर चुनौतियाँ हैं।  हमें इन चुनौतियों से लड़ने के लिए सिर्फ शरीर नहीं आत्मबल को मजबूत बनाना पड़ेगा।  पाश्चात्य पद्धति की जिम में संगीत की मधुर ध्वनि के साथ पसीना बहा कर बॉडी मेंटेन करने से शरीर सौष्ठव तो हो जाता हैं, पर शरीर और मन का लचीलापन जो योग के माध्यम से प्राप्त होता हैं जिम में संभव नहीं हैं। हमारी सन्त परम्परा में भी इसका उल्लेख हैं। 


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फिट इंडिया 

भारतीय संत परम्परा में ग्रंथो पर आधारित तथ्यों के अलावा पतंजलि योग पीठ के माध्यम से बाबा रामदेव ने मिडिया, सोशल मीडिया, कैंप, प्रचार-प्रसार आदि को माध्यम बना कर योग को घर-घर तक पहुँचाने में कामयाबी प्राप्त की। भारतीय धर्म शास्त्रों में योग को सदैव आधार बनाया गया हैं। ऐतिहासिक प्रमाणों से यह कहा जा सकता हैं कि भारतीय सांस्कृतिक दर्शन हैं जो सम्पूर्ण विश्व को मार्गदर्शन प्रदान कर रहा हैं। 




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पतंजलि योग सूत्र 

आज हम covid 19 वायरस कारण कोरोना नामक बीमारी से वैश्विक महामारी से झुझ रहे हैं।  संक्रमणकारी यह रोग जिस स्थिति से विश्व के अन्य देशों को प्रभावित कर रहा हैं, ऐसा भारतीय वातावरण में नहीं हैं। सरकार के सजगता के साथ भारतीय नागरिको के पास प्रकृति जन्य साधन जैसे आयुर्वेद का काढ़ा, नीम, तुलसी, एलोवेरा, नीम्बू , आंवला, चिरायता जैसे औषिधियाँ हैं। वहीं योग के माध्यम से अपनी श्वसन क्रिया पर नियंत्रण करने वाले अनुलोम-विलोम, कपाल भारती, भ्रामरी, सूर्यनमस्कार जैसी योगिक एवं व्यायाम की क्रियाएं हैं।  जिससे शरीर को एवं योग साधना के माध्यम से चित एवं मन को एकाग्र कर आत्मा शुद्धि का कार्य किया जाता हैं। 



कुंडलीनी को जागृत करना योग को विशिष्ठ शैलियों में आता हैं जिससे मनुष्य देवत्व की ओर अग्रसर होता हैं।  अभी हमें योग की उस स्थिति का चिंतन नहीं करना हैं क्यूंकि भागदोड की इस जिंदगी में सहज साधना से जन साधारण के मानस तक पहुँचाने वाली बातों को ही करना महत्वपूर्ण होता हैं। देश का नागरिक जिन सामान्य नियमों में चलकर स्वयं का उध्दार कर सके उतना ही काफी होता हैं। 



योग शब्द का अर्थ सम्बन्ध या मिलन जुड़ाव होता हैं। दर्शनशास्त्र में योग का अर्थ जीवात्मा और परमात्मा का मिलन "योग" हैं।  भारतीय परम्परा में पतंजलि ने योग सूत्र की रचना  हैं। समय-समय पर सभी ने अपनी व्याख्या के अनुसार योग के बारे में कहा हैं, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास, कबीर, गुरु गोविन्द सिंह, जैन-बौद्ध धर्म के विभिन्न रचनाकारों ने इसे अपनी विचारधारा के अनुसार रचा हैं। 






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योग मात्र अक्षरों से रचा एक शब्द नहीं बल्कि विश्व को एक सूत्र में बांधने वाला एक बंधन हैं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में 21 जून को योग दिवस घोषित करने की बात स्वीकृत कराकर भारत को पुनः विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त हो उस ओर कदम बढ़ाया हैं। भारतीय शिक्षा एवं संस्कृति जिसमें शून्य की खोज से लेकर आयुर्वेद की श्रुश्रुत एवं चरक सहिंता हो या योग दर्शन एक नया मार्ग प्रदान किया हैं। 



पाश्चात्य संस्कृति की भागदौड़ भरी जिंदगी से आध्यात्म की ओर बढ़ने की परम्परा को श्री श्री रवि शंकर ने विश्व के कई देशों तक पहुँचाया।  आर्ट ऑफ़ लिविंग के माध्यम से अपनी जीवन पद्धिति में सुख और आनंद की अनुभूति का मार्ग बताया हैं। 



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श्री श्री रविशंकर जी 
आइये हम सभी मिलकर भारतीय संस्कारों के इस अद्भुत खजाने का आनंद लें। खुशियों को भौतिक वस्तुओं में तलाशने की अपेक्षा अंतरमन में खोजें। सुख कही और नहीं हमारे अंदर है। ईश्वर कही और नहीं हमारे मध्य हैं। चित्त और मन की एकाग्रता ही योग हैं।  विश्व की यह भयानक बीमारी हम अपने अंदर प्रवेशित न होने दे।




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meditation






योग को संयोग नहीं सुयोग बनाओ। 
अपने अंगो को सुडोल और मजबूत बनाओ।

जीवन में श्वसन पर नियंत्रण जरुरी। 
अनुशासन के साथ संयम से भी न बने कोई दुरी 

आज मिलकर अपना सुख अपनाएँ। 
योग को अपनाकर दुःख को दूर भगाएँ  

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