मंगलवार, 30 जुलाई 2019

नारी के प्रति बदलाव जरुरी

नारी के प्रति बदलाव जरुरी 

भारतीय लोकतंत्र भारतीय चिंतन, धर्म, सामाजिक मूल्यों, परम्पराओं, सम्मान और स्वाभिमान लिए जाना जाता है। विगत कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति ने देश को शर्मसार किया हैं।                                                                                             भाषा की सुचिता समाप्त हो रही हैं। जाति, धर्म, भ्रष्टाचार, दुराचार यह चुनावी राजनीती में आने लगे तब तक जनता समझ नहीं पाई जी इसका अंत कहाँ हो ये कब तक बढ़ता रहेगा। सामान्य बातचीत में हम कहते हैं कि राजनीति बहुत बुरी जगह हैं। घर से निकलकर समाज के लिए कुछ करने का जज्बा है तो हमें राजनीति को छोड़कर सोचना चाहिए परन्तु दूसरी ओर यह भी कहते है कि जब तक अच्छे लोग राजनीति में नहीं आयेंगे। राजनीति स्वच्छ कैसे होगी।  
महत्वकांक्षा के इस युग में सत्ताधारी दल के इर्द-गिर्द महिलाओं का आना ओर शॉर्टकट से ऊपर पहुंचने की होड़ में राजनीति की गंदगी को सडकों पर लाकर खड़ा किया हैं। सोशल मिडिया के इस युग में मिनटों में आपके चित्र वीडियो और समस्त अश्लीलताएं समाज के बीच होती हैं। सबको लगता हैं राजनीति एक ऐसा माध्यम हैं जो सम्मान और सम्पदा दोनों देगा और शायद देता भी हैं परन्तु क्या सम्पूर्ण राजनीति गलत दिशा की ओर ही जा रही है। पता नहीं विचारणीय प्रश्न है !

नारी के प्रति बदलाव जरुरी
नारी के प्रति बदलाव जरुरी 

तीन तलाक़ बिल पास हुआ।  

तीन तलाक़ बिल पास हुआ महिलाओं के संरक्षण और उन्हें हलाला जैसी जिल्लत भरी जिंदगी से मुक्ति के लिए प्रयासों को सराहा जाना चाहिए। इस्लाम और इस्लामियत के नाम पर चार-छः बच्चे पैदा करके शौहर दूसरी बीवी तो कभी तीसरी बीवी ले आता था। जिस समाज में औरत को उपभोग की वास्तु समझा जाता है ऐसे वहशी समाज में यह बिल एक ऐतिहासिक पहल सिद्ध होगा औरत सिर्फ घर सजाने की नहीं धर्म, संस्कार और एक ही जगह दो घरों का सम्मान बढ़ाने वाली संस्था हैं। हम आज जब नारी समाज की बात करते हैं तो सिर्फ मुस्लिम समाज से ही जोड़कर देखा जाना उचित नहीं किसी भी धर्म मजहब और समाज में स्त्री सम्मान की महत्ता बहुत आवश्यक होती है। आज हम तलाक़ और हलाला से मुक्ति और इसे आपराधिक श्रेणी में लेकर महिलाओं के सम्मान में इज़ाफ़ा कर रहे हैं।  
नारी के प्रति बदलाव जरुरी
नारी के प्रति बदलाव जरुरी 

संसद भी अछूती नहीं। 

भाषा की सुचिता से देश की संसद भी शेष नहीं रही है। जिसके मन और वाणी में जो विचार आ रहे है, वह उदगार प्रकट कर रहा है। वर्तमान में आज़म खाँ की टिप्पणी ने लोकसभा में हंगामा कर रखा हैं।  जाति, धर्म,समुदाय और नारी सम्मान के विषय पर जन प्रतिनिधियों को तो कम से कम भाषा एवं विचारों पर नियंत्रण करना ही चाहिए। यदि महिलाये अपने घर से निकलकर देश, समाज के लिए कुछ करना चाहे तो उन्हें एक सम्मानपूर्ण आधार मिलना ही चाहिए। समाज में स्त्रियों को आज भी हीन भावना से देखा जा रहा हैं। 

पत्नी पर पति भारी हर जगह 

महिला सशक्तिकरण की दिशा में हम समाज को कितना भी आगे बढ़ाये, निचलें स्तर तक सुधार में लगभग २० वर्ष और बीत जायेंगे। सरपंच, जनपद, जिला पंचायतों, मंडी अध्यक्षों के लिए सीट आरक्षित कर महिलाओं को समाज तो चुन लेता मगर उनके पति सम्पूर्ण व्यवस्था का संचालन करते हैं। स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने वाली महिलाओं के पतियों के हाथों में ही मैंने सत्ता की चाबी देखी हैं।  जब कोई पति अपनी पत्नी के प्रगति के मार्ग को सहजता से नहीं देखता तो स्वच्छ रूप से निर्णय लेकर नारियाँ कब समाज में अपना स्थान बनाएगी। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण है जिसमें पुरुषों से अधिक महिलाओं ने काम को बेहतर अंजाम दिया हैं, परन्तु पुरुष मानसिकता का यह समाज अभी परिपक़्व नहीं हैं। एक दो गलत स्त्रियों के कारण सम्पूर्ण स्त्री वर्ग को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता हैं। आज़ादी सभी का मौलिक अधिकार है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए। 
नारी के प्रति बदलाव जरुरी
नारी के प्रति बदलाव जरुरी 

स्त्री शिक्षा पर बल

> बदलाव के इस दौर में स्त्री शिक्षा के सन्दर्भ में समाज में जागरूकता बढ़ी हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर नज़र आने लगा हैं। शिक्षा से समाज का बदलाव होगा ऐसा भी सोचना १००% उचित नहीं। दरअसल आधुनिकता का एक अजीब रूप सामने आ रहा हैं जो बातें विचारों के माध्यम से बदलाव का कारन होना चाहिए वही बनते मात्र मोबाईल, कपड़ो, वाहनों के संचालन तक सिमित रह गई है। आधुनिकता का तात्पर्य हम मानसिकता से बदलना चाहते है, मगर महिलाओं को लेकर समाज की मानसिकता आज भी जस की तस हैं। 



विशाल हृदय की आवश्यकता 

सम्पूर्ण समाज को महिलाओं को लेकर विशाल हृदय, भरोसेमंद व्यव्हार एवं सम्बल की जरुरत लगती हैं। औरत यानि बेचारी, अबला कमजोर नहीं बल्कि नौ माह तक कोख में रख जन्म देने वाली माँ से लेकर अंग्रेजों से मुकाबला करने वाली झाँसी की रानी तक है। संसद में आज तक महिला आरक्षण बिल पास नहीं हो पाया।  मुस्लिम समाज तीन तलाक़ और हलाला जैसे मुद्दे पर घिरा हैं वहीं ईसाई समाज भी ननों के मसले पर कटघरे में हैं। नारी उपभोग की वास्तु नहीं हमारी जन्मदात्री हैं। हम अपनी पुरुष प्रधान मानसिकता से बहार नहीं आ पा रहे है। कई समाजों में पर्दा प्रथा अब भी जारी है। दहेज़ के मुक़दमे आज भी दर्ज हो रहे है। अपमान का यह दंश मातृशक्ति को कब तक झेलना पड़ेगा ? चिंतन का विषय हैं। 

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लक्ष्मी हो तुम, तुम ही हो सरस्वती !
माता यशोदा हो, तुम्ही हो धर्मिणी !!
नाज़ है तुमपे, शान है तुझसे !
हम सबके अरमान है तुमसे !!

सोमवार, 22 जुलाई 2019

कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे

कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  

जनतंत्र में पक्ष एवं विपक्ष की भूमिका बराबर की न सही किन्तु समय पर मुद्दों की बहस तो होनी ही चाहिए। भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी पार्टी का अहंकार रखने वाली कांग्रेस आज जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों से अनभिज्ञ हैं। आज सरकार ने बेरोजगारी दूर करने के प्रयासों के लिए कई योजनाये शुरू की पर जमीनी हक़ीक़त कुछ ओर होती हैं। सांसद, विधायक एवं अन्य जान प्रतिनिधि कभी भी बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता से रूबरू नहीं होतें। सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में नौकरिया कम करने के प्रयास जारी हैं। जनता के बीच सरकारी नौकरी की चाह सदैव जोर पकड़ती रहती है। काम कम, पैसे ज्यादा, जीवन सुरक्षित यह तीन मंत्रो पर आधारित सरकारी नौकरी आसान नहीं परन्तु निजी क्षेत्र भी सदैव अपने व्यवसाय को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कर्मचारियों के मुद्दे पर जनहित एवं समाज विकास की बात कभी नहीं सोचते। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  


असफल होते सरकारी प्रयास 

सरकार ने स्टार्ट-अप योजना, मुद्रा लोन, मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री के नाम पर युवाओं को व्यवसाय स्थापित कर स्वयं के पैरों पर खड़े होने के प्रयत्नों का दावा किया जा रहा है। सरकारी योजनाओं की रचना और उसके क्रियान्वयन में बहुत बड़ा अंतर होता है।  इन सारी योजनाओं को हकीकत में लाने के लिए बहुत बड़ी भूमिका बैंकों की होती है, परन्तु बैंक अधिकारी इन योजनाओं को अपने यहाँ स्थित खाताधारकों को जो व्यापार-व्यवसाय में पूर्व से संलग्न है, के माध्यम से आंकड़ों को पूरा करते हैं। 

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" सरकार मनरेगा की स्किम को भी बंद कर सकती है " यह कहकर आने वाले समय का संकेत दिया हैं।  बेरोजगारी सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं है इस परिस्थिति में रहकर युवा अपने मूल कार्य से भटक कर गलत मार्ग का चयन कर लेते है।  अंगेजों से लड़कर आज़ादी प्राप्त करके भी हमने हासिल क्या कर लिया।  देश का बंटवारा, आरक्षण का ज़हर, मेकाले की शिक्षा पद्धिति समाज तो उसी दिशा में चल रहा हैं, जिस ओर अंग्रेज ले ले जाना चाह रहे थे। पक्ष और विपक्ष संसद में बैठकर नूरा-कुश्ती की लड़ाई लड़ता रहता है। जन सामान्य की अड़चन बढ़ रही है। बदलाव किसी बाजार से नहीं ख़रीदा जा सकता है, कि हम विदेशों से आयत कर लेंगे। देश में बदलाव के निर्णय सरकारी प्रयासों और साहस पर निर्भर नहीं हों सकते हैं।  अब समय जन भागीदारी का भी हैं, मगर बेरोजगारी, नौकरियों की व्यवस्था, व्यवसाय का निर्धारण यह सब मात्र सरकारी प्रयासों से निर्मित योजनाओं और उनके उचित क्रियान्वयन पर निर्भर करता हैं। वातानुकूलित कमरों में बैठकर बनाई जाने वाली योजनायें जमीनी स्तर पर कितनी कामयाब होगी यह चिंतन का विषय  हैं। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  

अपराधों में कमी आएगी !

जब युवाओं को समय पर उचित रोजगार, बेहतर शिक्षा व्यवस्था एवं विश्व स्तरीय जीवन-यापन की सुविधा अर्जित नहीं नहीं होती है तो महत्वाकांक्षा के इस युग में जब हम मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से विश्व को जोड़ने की बात कर रहे हैं और वो जुड़ भी रहा हैं तो ऐसे में हम उनका जीवन स्तर ऊँचा करना ही होगा। आज जमाना एक चलती हुई बस की सवारियों की तरह हैं जिसे सीट वो खड़ी हुई सवारी को सीधे खड़े रहने की सलाह दे रहा हैं।  एक-दूसरे की तकलीफों को समझने का समय नहीं रहा। चुनावी वारों की फेहरिस्त लम्बी होती चुनाव में खड़ा उम्मीदवार भी नहीं पड़ता और वर्तमान समय में हारा हुआ कमज़ोर विपक्ष जिसके मजबूत होने की कोई सम्भावना नहीं है। सबके ऊपर भ्रष्टाचार के बहुत से मामले है, वे सरकार के सामने चुनौती बनकर कड़ी समस्याओं के मामले में क्या बहस करेंगे। हरे हुए सेनापति के साथ कोई सिपाही नहीं होते। सरकारी प्रयत्न जारी हैं। 


कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे
कमजोर विपक्ष - डूबते मुद्दे  

हमें क्या करना हैं ?

हमें अब सरकार और विपक्ष की अपेक्षा अपने स्वयं के बल पर ही मार्ग खोजना चाहिए। कोई हमें रास्ता दिखाये उसके बजाये हम स्वयं अपनी रह चुने। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का प्रयत्न करें पर उस पर निर्भर भी न रहे। भारत संभावनाओं का देश है, यहाँ एक रास्ता बंद होता है तो चार नए मार्ग मिल जाते हैं। युवाओं को अपने माता-पिता के संस्कारों की चिंता कर रोजगार के लिए उचित दिशा का चयन करना चाहिए। आज का युवा ही असली भारत हैं.यही हमारी संपत्ति है और यही हमारा आने वाला कल हैं। 

रविवार, 21 जुलाई 2019

सुख और आनंद का रमणीय स्थल " श्री सुखानंद तीर्थ "

" श्री सुखानंद तीर्थ "
श्री सुखानंद तीर्थ 
राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर  स्थित पर्वत श्रेणियों में " श्री सुखानंद तीर्थ " एक बहुत ही रमणीय स्थान हैं।  यह जावद नगर से लगभग १३ किलोमीटर दूर हैं। यहाँ पहाड़ियां कोण बनाती हुई स्थिति में हैं।  यहाँ का प्राकृतिक दृश्य बहुत ही मनोरम है जो हजारों सैलानियों को प्रतिवर्ष आकर्षित करता हैं। 


राजा आनदपाल द्वारा विक्रम सम्वत ५ में ( ५२ ईस्वी पूर्व ) इस स्थान की खोज की गई। 


सुख और आनंद का रमणीय स्थल " श्री सुखानंद तीर्थ "
सुख और आनंद का रमणीय स्थल " श्री सुखानंद तीर्थ "


उज्जयिनी ( उज्जैन ) से लेकर शिवलिङ्ग ग्राम तक विस्तीर्ण भू-भाग " शिवभूमि " हैं, जहाँ हजारों शिव मंदिर बने हुए है। इस भाग में प्रसिद्ध स्थल है - उज्जयिनी में महाकाल, दशपुर ( मंदसौर ) में पशुपतिनाथ, अरनोद (प्रतापगढ़) में गौतमनाथ, बांसवाड़ा अरथूना एवं त्रिपुर सुंदरी, चित्तौड़ के किले की शिव प्रतिमा एकलिंग जी में एकलिंग जी का प्राचीन देवालय इनके अतिरिक्त अन्य अनेक पवित्र और आकर्षक स्थान हैं। 


श्री सुखानंद तीर्थ - उन्ही में से एक पावन तीर्थ है जो श्री शुकदेव मुनि को तपश्चर्या से स्वयं तीर्थ रूप था।  यह स्थान सुन्दर रमणीय पहाड़ों और चन्दन वन के बीच हैं।  चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा दृश्य आगंतुकों  को प्रफुल्ल कर नई स्फूर्ति देता हैं। जगत प्रसिद्ध श्री वेदव्यास पुत्र महामुनि श्री शुकदेव ने इस स्थान की रमणीयता एवं शांत वायुमंडल से प्रसन्न होकर यहाँ पर तपस्चर्या की थी तब से ही यह स्थान एक महान तीर्थ बन गया हैं। 

                         यहाँ के पर्वतीय गर्भ भाग से अविरल प्रवाहिन होने वाली गंगा श्री शुकदेवमुनि द्वारा लाई गई, उनकी तप सिद्धि का फल हैं। जो " शौकी गंगा " के नाम से प्रचिलित हैं।  यह स्थान ऊँची पहाड़ियों के मध्य में स्थित हैं, जहाँ सीढ़ियों की लम्बी क़तार चढ़कर पहुंचना होता है।  यहाँ के झरनों से १९ मीटर ( लगभग ६१ फ़ीट ) की ऊंचाई से बारहों महीने पानी गिरता हैं।  अपने मृतक परिजनो का अस्थि प्रवेश करने के लिए दूर-दूर के अनेकों शृद्धालु जन भी यहाँ बहुत मात्रा में आते हैं। 

विक्रम सम्वत्  १७२४ (सन् १६६६ ई. ) में जब छत्रपति शिवजी औरंगजेब की कैद आगरा से दि. २९ अगस्त १६६६ ई. को गायब होकर दक्षिण भारत गए तब कहते है वे महापुरुष इस स्थान पर ठहरकर गए थे। 



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जगत प्रसिद्ध श्री वेदव्यास पुत्र महामुनि श्री शुकदेव
महामुनि श्री शुकदेव 

विक्रम की ग्यारवहीं शताब्दी में दसनाम तिलक महान संत श्री बालगिरिजी महाराज ने यहाँ मठ-मंदिर आदि निर्माण कराकर प्राकृतिक-शिवलिंग तथा अपनी आचार्य परंपरा के सप्तम आचार्य श्री शुकदेव मुनि प्रतिष्ठा मिटी श्रावण शुक्ल ५ सोमवार ११६५ वि. को करवाकर इस तीर्थ को मूर्त रूप दिया जो आज जीर्ण-शीर्ण दशा में अवस्थित होकर भी प्रसिद्धि को प्राप्त है। 

मन्दिर निर्माण कार्य प्रारम्भ ११६२ विक्रमी ( सन् ११०५ ई. ) में हुआ तथा सम्वत ११७२ विक्रमी ( सन् १११५ ई. ) में पूर्ण हुआ। 


सौजन्य से :- श्री मनोहरदास अग्रवाल ( श्री सुखानंद तीर्थ परिचय पुस्तक के संपादक )

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नादान बने क्यों बेफिक्र हो ?

नादान बने क्यों बेफिक्र हो ? नादान बने क्यों बेफिक्र हो,  दुनिया जहान से !   हे सिर पे बोझ भी तुम्हारे,  हर लिहाज़ से !!  विनम्रत...